3. स्वदेश के सम्बन्ध में “विज्ञान मूलक सत्य धर्म प्रवर्तक भगवान देवात्मा” की धर्म-शिक्षा —
3. देवात्मा फरमाते हैं, कि प्रत्येक जन के लिए यह अति आवश्यक हौ, कि वह अपने देशवासियों में शांति की रक्षा तथा उनकी कई प्रकार की उन्नति के लिए शासन-व्यवस्था…
3. देवात्मा फरमाते हैं, कि प्रत्येक जन के लिए यह अति आवश्यक हौ, कि वह अपने देशवासियों में शांति की रक्षा तथा उनकी कई प्रकार की उन्नति के लिए शासन-व्यवस्था…
2. प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह अति आवश्यक है, कि वह पृथ्वी के अन्य सभी देशों की अपेक्षा अपने देश के साथ अपना अधिक सम्बन्ध बोध करे, क्योंकि शेष देशों…
1. प्रत्येक जन के लिए यह अति आवश्यक है, कि वह अपने देश तथा देश वासियों के साथ अपना अति घनिष्ट सबंध अनुभव करे । तथा अपने देश वासियों के…
5. भगवान देवात्मा फरमाते हैं, कि किसी ऐसी सख़्त बीमारी के भिन्न जिसके कारण अपने शरीर पर मेरा कुछ भी नियंत्रण न रहे, मैं काम करने से बंद नहीं होता…
4. एकमात्र देवात्मा ही “सत्य तथा शुभ अनुरागी” हैं । अतः वह इस पथ से तिल भर भी इधर या उधर भटक नहीं सकते । अतः उनका यह दावा (claim)…
3. देवात्मा की अद्वितीय देवज्योति (अर्थात अद्वितीय सूझबूझ) को पाकर ही किसी सुपात्र जन को अपने आत्मा के अस्तित्व, उसके रोगो उन रोगों से उसके पतन, उस पतन के महा…
2. देवात्मा फरमाते हैं, कि चाहे हमारा सूर्य अपनी ज्योति देना छोड़ दे तथा चाहे यह धरती हमारे पांवों के नीचे से निकलकर चकनाचूर हो जाए, लेकिन मैं सत्य का…
1. देवात्मा फरमाते हैं — जो जन मेरे देवजीवन का अध्ययन करते हैं, उन पर यह सत्य भलीभाँत प्रगट होना चाहिए, कि मैं अपने आत्मा में प्रकृति के जिन विकासकारी…
प्रिय मित्रो ! किसी विषय मे सत्यज्ञान तथा उच्च-प्रेरणाएं लाभ करने का सबसे सरल उपाय । यह है कि महान व्यक्तियों की जीवन-गाथाओं का हार्दिक अनुराग -भावों से…
भगवद गीता का यह वचन है, कि “श्रद्धावान्म लभते ज्ञानम् |” इसका अर्थ यह है, कि जो श्रद्धावान होते हैं, वही ज्ञान लाभ करते हैं…