10. देवात्मा फरमाते हैं, कि प्रत्येक नागरिक के लिए अति आवश्यक है, कि वह अपने देश की सुशासन-व्यवस्था के सुचारू रूप से कार्य निर्वहन के लिए कर आदि देने के द्वारा राजकोष की उचित रूप से सहायता करे ।
प्रिय मित्रो ! संसार मे हमें कुछ भी मुफ्त में नहीं मिलता तथा नहीं मिल सकता है । हमें हर सहूलत की कोई न कोई क़ीमत चुकानी पड़ती है । कई बार हमें छोटी सी सहूलत की भी बहुत बड़ी क़ीमत देनी पड़ती है तथा कई बार हमें पता भी नहीं चलता, कि हमने किसी सेवा के बदले क्या क़ीमत चुकाई है । अतः कर आदि चुकाकर हम देश की सेवा के बदले हित-परिशोध ही करते हैं तथा बहुत बड़े पुण्य के भागी बनते हैं । अन्यथा बहुत बड़े पापी बनते हैं तथा महा भयानक दण्ड के अधिकारी बनते हैं ।
काश ! हम सबके शुभ का मार्ग प्रशस्त हो ।
प्रिय मित्रो ! संसार मे हमें कुछ भी मुफ्त में नहीं मिलता तथा नहीं मिल सकता है । हमें हर सहूलत की कोई न कोई क़ीमत चुकानी पड़ती है । कई बार हमें छोटी सी सहूलत की भी बहुत बड़ी क़ीमत देनी पड़ती है तथा कई बार हमें पता भी नहीं चलता, कि हमने किसी सेवा के बदले क्या क़ीमत चुकाई है । अतः कर आदि चुकाकर हम देश की सेवा के बदले हित-परिशोध ही करते हैं तथा बहुत बड़े पुण्य के भागी बनते हैं । अन्यथा बहुत बड़े पापी बनते हैं तथा महा भयानक दण्ड के अधिकारी बनते हैं ।
काश ! हम सबके शुभ का मार्ग प्रशस्त हो ।