14. देवात्मा अपनी देववाणी में फरमाते हैं, कि मैं इस धरती पर वह दीन व धर्म लाना चाहता हूँ, कि जो इसी दुनिया मे सब प्रकार के पापों तथा सब प्रकार की बुराइयों का नाश करता हो, तथा इसी धरती को सच्चा स्वर्ग बनाता हो ।
प्रिय मित्रो ! देवात्मा की उपरोक्त देववाणी से स्पष्ट है, कि धर्म से हमारी क्या क्या अपेक्षाएं हैं । जिस तरह चिकित्सा-विज्ञान तथा डॉक्टर से हमारी यह अपेक्षा होती है, कि वह हमारे शारीरिक-रोग को पूरी तरह ठीक कर दे — ठीक उसी तरह धर्म से हमारी यह अपेक्षाएँ हैं, कि वह हमारी जीवनी-शक्ति अर्थात “आत्मा” से सम्बंधित सारी समस्याओं का पूर्णतः सही समाधान अर्थात इलाज कर दे, क्योंकि — देवात्मा के ही अनुसार “मनुष्य की सारी समस्याओं का इलाज मनुष्य की आत्मा में निहित है” अर्थात यदि मनुष्यात्मा का सुधार किया जा सके, तो इसकी सारी समस्याएं ठीक हो सकती हैं ।
प्रिय मित्रो ! देवात्मा की उपरोक्त देववाणी से स्पष्ट है, कि धर्म से हमारी क्या क्या अपेक्षाएं हैं । जिस तरह चिकित्सा-विज्ञान तथा डॉक्टर से हमारी यह अपेक्षा होती है, कि वह हमारे शारीरिक-रोग को पूरी तरह ठीक कर दे — ठीक उसी तरह धर्म से हमारी यह अपेक्षाएँ हैं, कि वह हमारी जीवनी-शक्ति अर्थात “आत्मा” से सम्बंधित सारी समस्याओं का पूर्णतः सही समाधान अर्थात इलाज कर दे, क्योंकि — देवात्मा के ही अनुसार “मनुष्य की सारी समस्याओं का इलाज मनुष्य की आत्मा में निहित है” अर्थात यदि मनुष्यात्मा का सुधार किया जा सके, तो इसकी सारी समस्याएं ठीक हो सकती हैं ।
काश ! हम भगवान देवात्मा की शिक्षा को कुछ न कुछ समझकर आत्मसात कर सकें, तथा हमारे शुभ का मार्ग प्रशस्त हो सके ।