9. विज्ञान-मूलक सत्य-धर्म प्रवर्तक एवं संस्थापक भगवान देवात्मा अपनी अद्वितीय देववाणी में फरमाते हैं, कि “पिशाचत्व के समुद्र में डूबते हुए आत्माओं के लिए जीवन की आशा का मैं एक जहाज़ हूँ । तथा पिशाचत्व के असरों से गिरी हुई जमाअतों तथा क़ौमों के बचाने, उभारने तथा उन्हें ऑला बनाने के लिए मिसाल एक ख़मीर के हूँ ।
साधारण शब्दों में — देवात्मा फरमाते हैं, कि सारे मनुष्य नीच-जीवन रूपी नारकीय समुद्र में डूब डूबकर मारने के लिए अभिशप्त हैं । उनके बचने तथा जीवित रहने की मेरे देव-रूपी जहाज़ के अतिरिक्त और कोई संभावना नहीं है । देवात्मा का दावा (Claim) है, कि जो कोई जन या वर्ग या क़ौम मेरे साथ जुड़ गई अर्थात मेरी शरणागत हो गई, वह पहले से अधिक उच्च बन जाएगी, क्योंकि मैं (अर्थात देवात्मा) उच्च-जीवन के दाता अर्थात “उत्प्रेरक” हैं । विज्ञान की भाषा मे उत्प्रेरक वह रसायण होता है, जिसके साथ वह जुड़ जाए, उसे अपने जैसा बना लेता है । अर्थात वह अपने मूल स्वभाव में दूसरों को बदलने की क्षमता रखता है, लेकिन अपने मूल स्वभाव को खुद कभी नहीं छोड़ता ।
प्रिय मित्रो ! आप सुनामी के बाढ़ से ओतप्रोत समुद्र के दृश्य को सम्मुख लाएं, जहां सारे मनुष्य जल में डूबकर मारने के लिए विवश थे । हज़ारों लाखों लोग डूब कर मर गए, करोड़ों रुपयों के धन की महा हानि हुई । देवात्मा उसी दृश्य के सादृश्य यह फरमाते हैं, कि सभी मनुष्य आत्म- अंधकार में ग्रस्त तथा महा नीच जीवन जीकर आत्मिक-मृत्यु के शिकार हो रहे हैं । अर्थात यह संसार मनुष्यात्माओं के नीच-जीवन का अति नारकीय समुद्र है, जिसमे डूबकर सब मरने के लिए विवश हैं ।
देवात्मा फरमाते हैं, कि उनका अपना देवजीवन ऐसे नारकीय समुद्र में एक ऐसा जलयान है, जिसका सहारा लेने वाला व्यक्ति बच सकता है । वह आगे फरामते हैं, कि उनके देव-प्रभाव वह अद्वितीय दैवी-औषधी हैं, जिनको ग्रहण करके मनुष्यों के नीच से नीच वर्ग तथा क़ौमें भी उच्च-जीवनधारी बन सकती हैं, क्योंकि देवात्मा को यह औषधी प्रकृति-माता की ओर से दैवीय वरदान स्वरूप हमारे जीवनों अर्थात हमारे आत्माओं की रक्षा एवं विकास के लिए मिली हुई है ।
साधारण शब्दों में — देवात्मा फरमाते हैं, कि सारे मनुष्य नीच-जीवन रूपी नारकीय समुद्र में डूब डूबकर मारने के लिए अभिशप्त हैं । उनके बचने तथा जीवित रहने की मेरे देव-रूपी जहाज़ के अतिरिक्त और कोई संभावना नहीं है । देवात्मा का दावा (Claim) है, कि जो कोई जन या वर्ग या क़ौम मेरे साथ जुड़ गई अर्थात मेरी शरणागत हो गई, वह पहले से अधिक उच्च बन जाएगी, क्योंकि मैं (अर्थात देवात्मा) उच्च-जीवन के दाता अर्थात “उत्प्रेरक” हैं । विज्ञान की भाषा मे उत्प्रेरक वह रसायण होता है, जिसके साथ वह जुड़ जाए, उसे अपने जैसा बना लेता है । अर्थात वह अपने मूल स्वभाव में दूसरों को बदलने की क्षमता रखता है, लेकिन अपने मूल स्वभाव को खुद कभी नहीं छोड़ता ।
प्रिय मित्रो ! आप सुनामी के बाढ़ से ओतप्रोत समुद्र के दृश्य को सम्मुख लाएं, जहां सारे मनुष्य जल में डूबकर मारने के लिए विवश थे । हज़ारों लाखों लोग डूब कर मर गए, करोड़ों रुपयों के धन की महा हानि हुई । देवात्मा उसी दृश्य के सादृश्य यह फरमाते हैं, कि सभी मनुष्य आत्म- अंधकार में ग्रस्त तथा महा नीच जीवन जीकर आत्मिक-मृत्यु के शिकार हो रहे हैं । अर्थात यह संसार मनुष्यात्माओं के नीच-जीवन का अति नारकीय समुद्र है, जिसमे डूबकर सब मरने के लिए विवश हैं ।
देवात्मा फरमाते हैं, कि उनका अपना देवजीवन ऐसे नारकीय समुद्र में एक ऐसा जलयान है, जिसका सहारा लेने वाला व्यक्ति बच सकता है । वह आगे फरामते हैं, कि उनके देव-प्रभाव वह अद्वितीय दैवी-औषधी हैं, जिनको ग्रहण करके मनुष्यों के नीच से नीच वर्ग तथा क़ौमें भी उच्च-जीवनधारी बन सकती हैं, क्योंकि देवात्मा को यह औषधी प्रकृति-माता की ओर से दैवीय वरदान स्वरूप हमारे जीवनों अर्थात हमारे आत्माओं की रक्षा एवं विकास के लिए मिली हुई है ।
काश ! हम देवात्मा के देवभावों को कुछ न कुछ समझ कर लाभान्वित हो सकें ।
शुभ हो ।