8. स्वदेश की न्याय-प्रणाली के विषय मे देवात्मा फरमाते हैं, कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह अति आवश्यक है, कि वह यथा-सामर्थ्य अपने देश की शासन-प्रणाली के विषय मे अधिक से अधिक सत्य-ज्ञान लाभ करके देश के साथ अपने हार्दिक सम्बन्ध को उन्नत करे ।
प्रिय मित्रो ! मैं केन्द्र सरकार के एक विभाग में सेवा-निवृत होने तक सेवारत रहा हूँ तथा मुझे अपने विभाग के कई साथी-अधिकारी एवं कर्मचारियों के साथ काम करने का महा सौभाग्य मिला है । मुझे कितने ही कार्यकारी विभागीय-नियमों को अपने साथियों को पढ़ाने का सुअवसर भी मिलता रहा है । विभागीय नियमावली को पढ़ाते पढ़ाते कई बार मैं आत्म-विभोर हो जाता रहा हूँ, क्योंकि सरकार ने जितने भी नियम बनाये हैं, वह सबके सब जनता की सेवा अर्थात हमारी सेवा तथा सहायता के लिए एवं सुरक्षित रखने के लिए ही बनाये हैं । मैं इस बात की बहुत प्रबल रूप से साक्षी देता हूँ । इन नियमों को समझ कर मानो मेरा धर्म-साधन हो जाता रहा है ।
प्रिय मित्रो ! मैं केन्द्र सरकार के एक विभाग में सेवा-निवृत होने तक सेवारत रहा हूँ तथा मुझे अपने विभाग के कई साथी-अधिकारी एवं कर्मचारियों के साथ काम करने का महा सौभाग्य मिला है । मुझे कितने ही कार्यकारी विभागीय-नियमों को अपने साथियों को पढ़ाने का सुअवसर भी मिलता रहा है । विभागीय नियमावली को पढ़ाते पढ़ाते कई बार मैं आत्म-विभोर हो जाता रहा हूँ, क्योंकि सरकार ने जितने भी नियम बनाये हैं, वह सबके सब जनता की सेवा अर्थात हमारी सेवा तथा सहायता के लिए एवं सुरक्षित रखने के लिए ही बनाये हैं । मैं इस बात की बहुत प्रबल रूप से साक्षी देता हूँ । इन नियमों को समझ कर मानो मेरा धर्म-साधन हो जाता रहा है ।
शुभ हो ।