8. देवात्मा इस विषय मे और फरमाते हैं, कि जहां तक कोई आत्मा मेरे देव-प्रभावों को ग्रहण करता है, वहां तक उसकी योग्यता के अनुसार उसके भीतर अपनी पिशाचत्व सम्बन्धी अर्थात नारकीय एक या दूसरे प्रकार की चिंता या क्रिया के लिए दुःख तथा क्लेश पैदा होता जाता है ।
सरल शब्दों में — भगवान देवात्मा के आध्यात्मिक-प्रभावों को ग्रहण करके ही किसी मनुष्य के हृदय में अपनी नीच चिंताओं तथा क्रियाओं का भयानक रूप उन्हें बहुत चिंतित तथा दुखी करने लगता है ।
जब तक हमें अपनी कोई आकांक्षा या दुष्कर्म बुरा तथा अपराध मूलक न लगे, तथा जब तक अपने ऐसे दुष्कृत्यों के प्रति हमारे हृदय में उच्च घृणा तथा उच्च दुःख उतपन्न तथा विकसित होकर हमे निरंतर आंदोलित न करता रहे, तब तक उससे शुद्धि पाने के लिए हम मानसिक एवं हार्दिक रूप से तत्पर नहीं हो सकते ।
सरल शब्दों में — भगवान देवात्मा के आध्यात्मिक-प्रभावों को ग्रहण करके ही किसी मनुष्य के हृदय में अपनी नीच चिंताओं तथा क्रियाओं का भयानक रूप उन्हें बहुत चिंतित तथा दुखी करने लगता है ।
जब तक हमें अपनी कोई आकांक्षा या दुष्कर्म बुरा तथा अपराध मूलक न लगे, तथा जब तक अपने ऐसे दुष्कृत्यों के प्रति हमारे हृदय में उच्च घृणा तथा उच्च दुःख उतपन्न तथा विकसित होकर हमे निरंतर आंदोलित न करता रहे, तब तक उससे शुद्धि पाने के लिए हम मानसिक एवं हार्दिक रूप से तत्पर नहीं हो सकते ।
काश : हम देवात्मा के देवप्रभाव लाभ करने के अधिकारी बन सकें ।