6. स्वदेश के सम्बन्ध में देवात्मा फरमाते हैं, कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह आवश्यक है, कि वह यथासंभव तथा अपनी सामर्थ्य के अनुसार अपने देश के सुन्दर प्राकृतिक-दृश्यों के दर्शन तथा देश के विविध सुंदर स्थानों में भ्रमण आदि के द्वारा उसके विषय मे अधिक से अधिक सत्य एवं हितकर ज्ञान प्राप्त करने की चेष्टा करे ।
प्रिय मित्रो ! हमारा “भारत देश” भूगौलिक तथा अन्य कई दृष्टियों, विशेषत: आध्यात्मिक-दृष्टि से सारे संसार मे बहुत भव्य तथा ऐश्वर्यवान है । सारे संसार को भारत का सबसे बड़ा उपहार तथा वरदान है “भगवान देवात्मा” तथा उनके द्वारा प्रदान की गई “प्रकृति-मूलक एवं विज्ञान मूलक सत्य धर्म-शिक्षा” जिसे सारा संसार समझने में अभी बहुत पिछड़ा हुआ है । लेकिन ऐसा सदा नहीं रहेगा । भारतवासी खुद भी देवात्मा के धर्म-विज्ञान को समझ पाने में अभी बहुत अयोग्य तथा असमर्थ हैं ।
हमारा बड़ा सौभाग्य है, कि हमें देवात्मा की शरणागत होने का शुभ अवसर मिल गया है ।
प्रिय मित्रो ! हमारा “भारत देश” भूगौलिक तथा अन्य कई दृष्टियों, विशेषत: आध्यात्मिक-दृष्टि से सारे संसार मे बहुत भव्य तथा ऐश्वर्यवान है । सारे संसार को भारत का सबसे बड़ा उपहार तथा वरदान है “भगवान देवात्मा” तथा उनके द्वारा प्रदान की गई “प्रकृति-मूलक एवं विज्ञान मूलक सत्य धर्म-शिक्षा” जिसे सारा संसार समझने में अभी बहुत पिछड़ा हुआ है । लेकिन ऐसा सदा नहीं रहेगा । भारतवासी खुद भी देवात्मा के धर्म-विज्ञान को समझ पाने में अभी बहुत अयोग्य तथा असमर्थ हैं ।
हमारा बड़ा सौभाग्य है, कि हमें देवात्मा की शरणागत होने का शुभ अवसर मिल गया है ।
काश: हमारे शुभ का मार्ग प्रशस्त हो सके ।