6. देवात्मा फरमाते हैं, कि अपने परम लक्ष्य अर्थात अद्वितीय जीवन-व्रत की सिद्धि के लिए मृत्यु के निकट पहुंचकर भी निरंतर संग्राम किए जाना मेरे जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य अर्थात कार्य रहा है । अतः इस संग्राम में मेरे हृदय से यह गूंज बार बार उठती रही है, कि तुम कभी पीछे मत हटना । अतः निश्चय मैं कभी पीछे नहीं हटूंगा । मैं रोता हुआ, तड़पता हुआ तथा बिलबिलाता हुआ इस मैदाने-जंग में लड़ता जाऊँगा ।
प्रिय मित्रो ! केवल “भगवान देवात्मा” को ही यह सत्य दिखाई दिया, कि यदि मनुष्यात्माओं को आत्मा की रक्षा एवं विकास के सत्य नियमों का सत्यज्ञान एवं बोध न मिल सका, तो वह आत्मिक-मृत्यु को प्राप्त होंगें । इसलिए देवात्मा हमें “आत्मा” का सत्यज्ञान एवं बोध प्रदान करके हमारी आत्मिक-रक्षा तथा विकास करना चाहते हैं । इस अत्यन्त कठिन परंतु प्रायः असम्भव कार्य को उन्होंने हमारे सर्वोच्च हित के लिए अपना जीवन-लक्ष्य बनाया है ।
प्रिय मित्रो ! केवल “भगवान देवात्मा” को ही यह सत्य दिखाई दिया, कि यदि मनुष्यात्माओं को आत्मा की रक्षा एवं विकास के सत्य नियमों का सत्यज्ञान एवं बोध न मिल सका, तो वह आत्मिक-मृत्यु को प्राप्त होंगें । इसलिए देवात्मा हमें “आत्मा” का सत्यज्ञान एवं बोध प्रदान करके हमारी आत्मिक-रक्षा तथा विकास करना चाहते हैं । इस अत्यन्त कठिन परंतु प्रायः असम्भव कार्य को उन्होंने हमारे सर्वोच्च हित के लिए अपना जीवन-लक्ष्य बनाया है ।
काश: हम देवात्मा के देव-भावों को कुछ न कुछ अवश्य समझ तथा अपना सकें हमारे भले का मार्ग खुल सके ।