4. एकमात्र देवात्मा ही “सत्य तथा शुभ अनुरागी” हैं । अतः वह इस पथ से तिल भर भी इधर या उधर भटक नहीं सकते । अतः उनका यह दावा (claim) है, कि कोई भी मनुष्य अपनी किसी निरंतर नीचगति अथवा नीच आचरण से देवात्मा को नीचे नही ले जा सकता, (अर्थात उन्हें नीच चिंता या नीच गति करने के लिए कभी बाध्य नहीं कर सकता) । वह आगे फरमाते हैं, कि ऐसी अवस्था में तुम्हें या तो ख़ुद मेरी भली रंगत ग्रहण करनी होगी, (अर्थात भले बनने का मार्ग अपनाना पड़ेगा) या बुराई के अनुरागी तथा तरफदार रहकर एवं मुझे क्लेश देकर तथा खुद भी क्लेश पाकर मुझसे दूर भाग जाना होगा ।
देवात्मा के उपरोक्त वचनों से हमें शिक्षा लेनी चाहिए, कि देवात्मा विश्व मे एकमात्र ऐसे व्यक्ति (धर्म-गुरु) हैं, जो सच्चाई तथा भलाई के पूर्ण अनुरागी हैं । यह शब्द पढ़ने में जितने सरल तथा आसान लगते है, लेकिन इनको समझ पाना उतना सरल नहीं, जितना हमें लगता है । सच्चाई तथा भलाई का अनुरागी होने का अर्थ है — सारी दुनिया को अपना विरोधी तथा शत्रु बना लेना ।
काश: हम देवात्मा के जीवन्त शब्दों के मर्म को उनके वास्तविक रूप में समझ तथा आत्मसात कर सकें ।
देवात्मा के उपरोक्त वचनों से हमें शिक्षा लेनी चाहिए, कि देवात्मा विश्व मे एकमात्र ऐसे व्यक्ति (धर्म-गुरु) हैं, जो सच्चाई तथा भलाई के पूर्ण अनुरागी हैं । यह शब्द पढ़ने में जितने सरल तथा आसान लगते है, लेकिन इनको समझ पाना उतना सरल नहीं, जितना हमें लगता है । सच्चाई तथा भलाई का अनुरागी होने का अर्थ है — सारी दुनिया को अपना विरोधी तथा शत्रु बना लेना ।
काश: हम देवात्मा के जीवन्त शब्दों के मर्म को उनके वास्तविक रूप में समझ तथा आत्मसात कर सकें ।
हम सबके शुभ का मार्ग प्रशस्त हो सके ।