14. विज्ञान-मूलक सत्य-धर्म के प्रवर्तक एवं संस्थापक भगवान देवात्मा के विषय मे समझने योग्य कुछ मूल बाते ।
14. देवात्मा अपनी देववाणी में फरमाते हैं, कि मैं इस धरती पर वह दीन व धर्म लाना चाहता हूँ, कि जो इसी दुनिया मे सब प्रकार के पापों तथा सब…
14. देवात्मा अपनी देववाणी में फरमाते हैं, कि मैं इस धरती पर वह दीन व धर्म लाना चाहता हूँ, कि जो इसी दुनिया मे सब प्रकार के पापों तथा सब…
11. देवात्मा फरमाते हैं,कि प्रत्येक देश के प्रत्येक नागरिक के लिए यह अति आवश्यक है, कि वह अपने देश की प्रत्येक जाति तथा उसके प्रत्येक दल/वर्ग एवं सम्प्रदाय आदि के…
13. देवात्मा फरमाते हैं, जब तक किसी व्यक्ति में मिथ्या तथा अशुभ के लिए कोई आकर्षण वर्तमान रहता है, तब तक उस जन में उस पक्ष में “सत्य एवं शुभ…
10. देवात्मा फरमाते हैं, कि प्रत्येक नागरिक के लिए अति आवश्यक है, कि वह अपने देश की सुशासन-व्यवस्था के सुचारू रूप से कार्य निर्वहन के लिए कर आदि देने के…
12. देवात्मा फरमाते हैं, कि हम किसी भी मनुष्य या किसी अन्य अस्तित्व के साथ बँधे हुए नहीं हैं । अर्थात हम किसी आस्तित्व के अनुरागी या प्रेमक नहीं हैं…
9. देवात्मा फरमाते हैं, कि प्रत्येक नागरिक के लिए अति आवश्यक है, कि वह अपने देश के शासन तथा प्रबंध विषयक उचित नियमों के प्रति उचित रूप से सम्मान-भाव का…
11. भगवान देवात्मा का दावा (Claim) है, कि कोई मनुष्यात्मा ऐसा नहीं है, जो मेरे साथ कुछ भी जुड़ा हो (अर्थात जिसने मेरे देव-प्रभावों को कुछ भी पाया हो), वह…
8. स्वदेश की न्याय-प्रणाली के विषय मे देवात्मा फरमाते हैं, कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह अति आवश्यक है, कि वह यथा-सामर्थ्य अपने देश की शासन-प्रणाली के विषय मे अधिक…
10. देवात्मा फरमाते हैं, कि देवत्व का जो ख़मीर मेरे अंदर है, वह पिशाचत्व को ग़ारत करता है , इसलिए वह पिशाचत्व के विष से प्रभावित आत्माओं के उद्धार एवं…
7. भगवन फरमाते हैं, कि प्रत्येक जन को चाहिए कि वह अपने देश की विविध प्रकार की हितकर वस्तुओं के विषय मे ज्ञान लाभ करके उसके अर्थात अपने देश के…