13. देवात्मा फरमाते हैं, जब तक किसी व्यक्ति में मिथ्या तथा अशुभ के लिए कोई आकर्षण वर्तमान रहता है, तब तक उस जन में उस पक्ष में “सत्य एवं शुभ -स्वरूप भगवान देवात्मा” के प्रति कोई आकर्षण या अनुराग उतपन्न नहीं हो सकता । इस आकर्षण या अनुराग के न उतपन्न होने से हमें क्या हानि होती है, उसके विषय मे नीचे दिए गए दृष्टांत का कृपया गहनता से अध्ययन करें । यथा —
प्रिय मित्रो ! मनुष्य-सृष्टि के सरताज भगवान देवात्मा आध्यात्मिक-जगत के देव-सूर्य हैं । जिस तरह हमारा भौतिक-सूर्य हमारे शारीरिक-जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है, ठीक उसी तरह भगवान देवात्मा हमारे “आत्मिक-जीवन” के लिए अति आवश्यक हैं । यदि भौतिक सूर्य न रहे, तो हम सब जीव शारीरिक-मृत्यु को पाने के लिए अभिशप्त है । अर्थात मर जाने से बच नहीं सकते । कोई अस्तित्व हमें मर जाने बचा नहीं सकता ।
अतः हम सबके लिए अति आवश्यक है, कि हम अपने आत्मिक-जीवन की रक्षा एवं विकास के ये देवात्मा की शरणागत हो सकें ।
सबके शुभ का मार्ग प्रशस्त हो ।