11. भगवान देवात्मा का दावा (Claim) है, कि कोई मनुष्यात्मा ऐसा नहीं है, जो मेरे साथ कुछ भी जुड़ा हो (अर्थात जिसने मेरे देव-प्रभावों को कुछ भी पाया हो), वह अपनी पहली निकृष्ट आत्मिक-अवस्था की तुलना में पहले से अधिक बेहतर या श्रेष्ठ न बन गया हो ।
प्रिय मित्रो ! यदि चिकित्सा-पद्धति ठीक चल रही हो, अर्थात यदि किसी रोगी को ठीक समय पर ठीक दवा दी गई हो, उसका ठीक इलाज किया गया हो, तो निस्संदेह उसका रोग पहले से कुछ न कुछ अवश्य घट जाएगा । ठीक इसी तरह यदि किसी रोगी-आत्मा को देवात्मा के धर्म-प्रभाव अर्थात देवप्रभाव उचित मात्रा में सचमुच मिल जाएंगे तथा यदि वह अधिकारी आत्मा होगा, तो उसके आत्मिक-रोग कुछ न कुछ अवश्य घट जाएंगे तथा वह पहले से अवश्य कुछ न कुछ बेहतर बन जायेगा । ऐसा दावा देवात्मा के अतिरिक्त और किसी जन ने आज तक नहीं किया तथा न ही किसी मनुष्य ने अपने जीवन से इस सत्य की कभी साक्षी दी है, कि पहले मैं बहुत पापी था, तरह तरह के पाप-कर्म किया करता था । देवात्मा के धर्म-प्रभावों को लाभ करते करते मेरे सारे पॉप-कर्म बन्द हो गए । अब मैं पहले से कुछ अच्छा इंसान बन गया हूँ तथा बन रहा हूँ ।
देवात्मा के अनन्य-भक्त श्रद्धेय श्रीमान देवत्व सिंह जी ने कभी फरमाया था, कि संसार में ऐसा कोई पाप-कर्म नहीं, जिसको करने का मुझे कुछ भी अवसर मिला हो तथा मैने उसे न किया हो ।
प्रिय मित्रो ! देवात्मा की अद्वितीय महिमा का आपको थोड़ा सा संकेत मात्र दे रहा हूँ । यदि आप श्रीमान देवत्व सिंह जी के जीवन-चरित्र “आत्म-परीक्षण” का गहन अध्ययन करेंगे, तो आपको धर्म की सच्ची महिमा, अपने लिए उसकी परमावश्यकता तथा देवात्मा की शरणागत होने के महत्व का कुछ न कुछ ज्ञान तथा बोध मिल सकता है ।
प्रिय मित्रो ! यदि चिकित्सा-पद्धति ठीक चल रही हो, अर्थात यदि किसी रोगी को ठीक समय पर ठीक दवा दी गई हो, उसका ठीक इलाज किया गया हो, तो निस्संदेह उसका रोग पहले से कुछ न कुछ अवश्य घट जाएगा । ठीक इसी तरह यदि किसी रोगी-आत्मा को देवात्मा के धर्म-प्रभाव अर्थात देवप्रभाव उचित मात्रा में सचमुच मिल जाएंगे तथा यदि वह अधिकारी आत्मा होगा, तो उसके आत्मिक-रोग कुछ न कुछ अवश्य घट जाएंगे तथा वह पहले से अवश्य कुछ न कुछ बेहतर बन जायेगा । ऐसा दावा देवात्मा के अतिरिक्त और किसी जन ने आज तक नहीं किया तथा न ही किसी मनुष्य ने अपने जीवन से इस सत्य की कभी साक्षी दी है, कि पहले मैं बहुत पापी था, तरह तरह के पाप-कर्म किया करता था । देवात्मा के धर्म-प्रभावों को लाभ करते करते मेरे सारे पॉप-कर्म बन्द हो गए । अब मैं पहले से कुछ अच्छा इंसान बन गया हूँ तथा बन रहा हूँ ।
देवात्मा के अनन्य-भक्त श्रद्धेय श्रीमान देवत्व सिंह जी ने कभी फरमाया था, कि संसार में ऐसा कोई पाप-कर्म नहीं, जिसको करने का मुझे कुछ भी अवसर मिला हो तथा मैने उसे न किया हो ।
प्रिय मित्रो ! देवात्मा की अद्वितीय महिमा का आपको थोड़ा सा संकेत मात्र दे रहा हूँ । यदि आप श्रीमान देवत्व सिंह जी के जीवन-चरित्र “आत्म-परीक्षण” का गहन अध्ययन करेंगे, तो आपको धर्म की सच्ची महिमा, अपने लिए उसकी परमावश्यकता तथा देवात्मा की शरणागत होने के महत्व का कुछ न कुछ ज्ञान तथा बोध मिल सकता है ।
काश ! हम सबके शुभ का मार्ग प्रशस्त हो ।