10. देवात्मा फरमाते हैं, कि देवत्व का जो ख़मीर मेरे अंदर है, वह पिशाचत्व को ग़ारत करता है , इसलिए वह पिशाचत्व के विष से प्रभावित आत्माओं के उद्धार एवं कल्याण का दैवीय-उपाय है ।
साधारण शब्दों में — संसार के सभी मनुष्यात्मा आत्म अंधकार से बुरी तरह ग्रस्त हैं । तथा नीच सुखानुरागों एवं नीच घृणाओं से भरे हुए होने के कारण नीच-जीवन व्यतीत कर रहे हैं तथा अपने अपने हिस्से का संसार मे नरक फैला रहे हैं । नीच-रागों के विष के प्रभावधीन अपनी तथा सबकी महा हानि कर रहे हैं । इस जीवन-विनाशक महा भयानक विष के जानलेवा प्रभावों से बचने तथा रक्षा पाने के लिए सभी मनुष्यात्माओं को देवात्मा के ख़मीर अर्थात उत्प्रेरक शक्ति की बहुत आवश्यकता है ।
साधारण शब्दों में — संसार के सभी मनुष्यात्मा आत्म अंधकार से बुरी तरह ग्रस्त हैं । तथा नीच सुखानुरागों एवं नीच घृणाओं से भरे हुए होने के कारण नीच-जीवन व्यतीत कर रहे हैं तथा अपने अपने हिस्से का संसार मे नरक फैला रहे हैं । नीच-रागों के विष के प्रभावधीन अपनी तथा सबकी महा हानि कर रहे हैं । इस जीवन-विनाशक महा भयानक विष के जानलेवा प्रभावों से बचने तथा रक्षा पाने के लिए सभी मनुष्यात्माओं को देवात्मा के ख़मीर अर्थात उत्प्रेरक शक्ति की बहुत आवश्यकता है ।
शुभ हो ।