1. देवात्मा फरमाते हैं — जो जन मेरे देवजीवन का अध्ययन करते हैं, उन पर यह सत्य भलीभाँत प्रगट होना चाहिए, कि मैं अपने आत्मा में प्रकृति के जिन विकासकारी नियमों का प्रतिनिधित्व करता हूँ, उनसे मैं कदापि एक तिल भर भी अर्थात लेशमात्र भी इधर-उधर नहीं हो सकता; चाहे उससे हमारी यह धरती टुकड़े-टुकड़े हो जाये, तथा चाहे हमारा सूरज सदा के लिए छुप जाए ।
देवात्मा के इन वचनों से यह स्पष्ट होता है, कि चाहे कुछ भी हो जाये, वह प्रकृति के सत्य, शुभ तथा आध्यात्मिक-सौंदर्य लाने वाले रक्षाकारी एवं विकासकारी नियमों को किसी अवस्था में भंग नहीं कर सकते ।
काश : हम भगवान देवात्मा के देवभावों को थोड़ा सा भी समझ सकें, तो हमारा बहुत शुभ होगा ।
देवात्मा के इन वचनों से यह स्पष्ट होता है, कि चाहे कुछ भी हो जाये, वह प्रकृति के सत्य, शुभ तथा आध्यात्मिक-सौंदर्य लाने वाले रक्षाकारी एवं विकासकारी नियमों को किसी अवस्था में भंग नहीं कर सकते ।
काश : हम भगवान देवात्मा के देवभावों को थोड़ा सा भी समझ सकें, तो हमारा बहुत शुभ होगा ।
हम सबके शुभ का मार्ग प्रशस्त हो ।