22. देवात्मा फरमाते हैं — आपको अपने आत्मा के सत्य-मोक्ष एवं विकास के लिए देवात्मा के साथ जुड़ने की अर्थात उनकी शरणागत होने की अत्यंत आवश्यक्ता है । जैसे यदि कोई माता अपनी छाती में दूध तो रखती हो, किंतु बच्चा दूध न खींचता हो, तो उस माता की कुछ पेश नहीं जाती, अर्थात वह असहाय है । ठीक उसी तरह देवात्मा के देव-प्रभावों को लाभ करके अधिकारी अर्थात सुपात्र आत्मा को सत्य-मोक्ष तथा आत्मिक-विकास मिल सकता है । लेकिन यदि किसी जन के हृदय में इन देव-प्रभावों के लाभ करने के लिए कोई इच्छा या आकांक्षा वर्तमान न हो, तो फिर देवात्मा की भी कुछ पेश नहीं जायेगी । इस तरह ऐसा जन आत्मा की सत्य मोक्ष तथा विकास से वंचित रह जायेगा ।
सरल शब्दों में — प्रत्येक मनुष्य को अपनी आत्मिक-मैल, आत्मिक-विकारों, नीच अनुरागों तथा नीच घृणाओं से सच्ची आत्मिक-शुद्धि अर्थात सत्य-मोक्ष तथा आत्मिक-विकास लाभ करने की अत्यंत आवश्यकता है, अन्यथा उसकी आत्मिक-मृत्यु आवश्यम्भावी है । अतः प्रत्येक जन के लिए अत्यंत आवश्यक है, कि वह देवात्मा सरीखे अद्वितीय आध्यात्मिक-चिकित्सक की शरणागत होने तथा सच्चे धर्म-भाव लाभ करने का प्रयास करे ।
काश ! हम सबके शुभ का मार्ग प्रशस्त हो ।
स्वास्तित्व अर्थात स्वयं के अस्तित्व की रक्षा एवं विकास विषयक जानने योग्य कुछ विशेष बातें, जिनका उल्लेख भगवान देवात्मा ने स्वयं-रचित अपूर्व ग्रंथ “देव-शास्त्र” खण्ड-चतुर्थ में किया है ।
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6. देवात्मा अपनी देववाणी में यह स्पष्ट करते हैं, कि प्रत्येक मनुष्य के लिए यह ज्ञान तथा बोध प्राप्त करना अति आवश्यक है, कि उसका आत्मा ही उसके शरीर का एकमात्र निर्माण-कर्ता है, उसके भिन्न और कोई उसके शरीर का निर्माता नहीं है ।
प्रिय मित्रो ! जीव-विज्ञान ने इस बात को प्रमाणिकता के साथ अनेकों बार सिद्ध किया है, कि प्रत्येक जीवित अस्तित्व चाहे वह वनस्पति, पशु या मनुष्य-जगत से संबंध रखता हो, उसकी जीवनी-शक्ति जिसे साधारण भाषा में आत्मा कहते हैं, वही उस जीव के शरीर की निर्माता होती है, अन्य कोई नहीं ।
तातपर्य यह कि प्रत्येक जीव में उसकी जीवनी-शक्ति ‘मुंख्य’ तथा स्थूल शरीर ‘गौण’ है । अर्थात दोनों अपने अपने स्थान पर महत्वपूर्ण हैं ।
हम सबके शुभ का मार्ग प्रशस्त हो ।
सबसे बड़ा धर्म है “विकासक्रम” – जो विज्ञान के द्वारा समर्थित है । प्रिय मित्रो ! प्रकृति अर्थात Nature एक है, विज्ञान बहुत से हैं । परन्तु उनके सच्चे, अटल तथा विव्यापी नियम जैसी की आशा करनी चाहिए, केवल यही नहीं कि आपस मे विरोधी नहीं, अपितु एक-दूसरे के समर्थक हैं । अर्थात सब विज्ञानों का एक टीम-वर्क है, इस टीम का कार्य पूरी प्रकृति के विकासक्रम को आगे बढ़ाना है । इसी तरह धर्म-विज्ञान का भी यही उद्देश्य है कि वह पूरे विश्व को उच्चत्तम मेल की अवस्था में वकसित करे । पूजनीय भगवान देवात्मा यही अद्वीतिय कार्य कर रहे हैं । सब का शुभ हो ।।
देवधर्मी।
“मनुष्य-जीवन” एक भव्य वरदान है, परंतु मात्र उनके लिए जो इसके अधिकारी अर्थात सुपात्र हैं ।
सरल शब्दों में — प्रत्येक मनुष्य को अपनी आत्मिक-मैल, आत्मिक-विकारों, नीच अनुरागों तथा नीच घृणाओं से सच्ची आत्मिक-शुद्धि अर्थात सत्य-मोक्ष तथा आत्मिक-विकास लाभ करने की अत्यंत आवश्यकता है, अन्यथा उसकी आत्मिक-मृत्यु आवश्यम्भावी है । अतः प्रत्येक जन के लिए अत्यंत आवश्यक है, कि वह देवात्मा सरीखे अद्वितीय आध्यात्मिक-चिकित्सक की शरणागत होने तथा सच्चे धर्म-भाव लाभ करने का प्रयास करे ।
काश ! हम सबके शुभ का मार्ग प्रशस्त हो ।
स्वास्तित्व अर्थात स्वयं के अस्तित्व की रक्षा एवं विकास विषयक जानने योग्य कुछ विशेष बातें, जिनका उल्लेख भगवान देवात्मा ने स्वयं-रचित अपूर्व ग्रंथ “देव-शास्त्र” खण्ड-चतुर्थ में किया है ।
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6. देवात्मा अपनी देववाणी में यह स्पष्ट करते हैं, कि प्रत्येक मनुष्य के लिए यह ज्ञान तथा बोध प्राप्त करना अति आवश्यक है, कि उसका आत्मा ही उसके शरीर का एकमात्र निर्माण-कर्ता है, उसके भिन्न और कोई उसके शरीर का निर्माता नहीं है ।
प्रिय मित्रो ! जीव-विज्ञान ने इस बात को प्रमाणिकता के साथ अनेकों बार सिद्ध किया है, कि प्रत्येक जीवित अस्तित्व चाहे वह वनस्पति, पशु या मनुष्य-जगत से संबंध रखता हो, उसकी जीवनी-शक्ति जिसे साधारण भाषा में आत्मा कहते हैं, वही उस जीव के शरीर की निर्माता होती है, अन्य कोई नहीं ।
तातपर्य यह कि प्रत्येक जीव में उसकी जीवनी-शक्ति ‘मुंख्य’ तथा स्थूल शरीर ‘गौण’ है । अर्थात दोनों अपने अपने स्थान पर महत्वपूर्ण हैं ।
हम सबके शुभ का मार्ग प्रशस्त हो ।
सबसे बड़ा धर्म है “विकासक्रम” – जो विज्ञान के द्वारा समर्थित है । प्रिय मित्रो ! प्रकृति अर्थात Nature एक है, विज्ञान बहुत से हैं । परन्तु उनके सच्चे, अटल तथा विव्यापी नियम जैसी की आशा करनी चाहिए, केवल यही नहीं कि आपस मे विरोधी नहीं, अपितु एक-दूसरे के समर्थक हैं । अर्थात सब विज्ञानों का एक टीम-वर्क है, इस टीम का कार्य पूरी प्रकृति के विकासक्रम को आगे बढ़ाना है । इसी तरह धर्म-विज्ञान का भी यही उद्देश्य है कि वह पूरे विश्व को उच्चत्तम मेल की अवस्था में वकसित करे । पूजनीय भगवान देवात्मा यही अद्वीतिय कार्य कर रहे हैं । सब का शुभ हो ।।
देवधर्मी।
“मनुष्य-जीवन” एक भव्य वरदान है, परंतु मात्र उनके लिए जो इसके अधिकारी अर्थात सुपात्र हैं ।