कोई भी वस्तु हमारे लिए दो पक्षों को लेकर मूल्यवान होती है । पहली — वह कितनी भव्य, कितनी ज्ञानवर्द्धक तथा कितनी हितकर है । दूसरी – वह हमें कितना उच्च रस देती है तथा हमारे भावी विकास में कितनी सहायक हो सकती है ।
विज्ञान मूलक सत्य-धर्म प्रवर्तक एवं संस्थापक भगवान देवात्मा फरमाते हैं, कि यदि कोई व्यक्ति इधर-उधर की बहुत बातें करता हो, जिनका कोई अर्थ नहीं, जिनकी कोई प्रायोगिकता नहीं तथा उनसे कोई हित नहीं आता, तो ऐसी बात हमें बिल्कुल समझ नहीं आती । हां, यदि कोई सरल भाषा मे सत्य तथा हितमूल्क बात करता है, तो वह हमें समझ आती है ।
अर्थात हमारी प्रत्येक बातचीत सत्य-मूलक एवं हित-मूलक होनी चाहिए ।
अर्थात हमारी प्रत्येक बातचीत सत्य-मूलक एवं हित-मूलक होनी चाहिए ।
सबके शुभ का मार्ग खुल सके ।
देवधर्मी