किसी ने सत्य ही कहा है, कि हे भगवन ! जब आपने मुझे माता-पिता दिए थे, तो उन्हें देखने की आंख अर्थात बोध भी दिए होते । सत्य है, शत-प्रति-शत सत्य है, कि भगवान देवात्मा यह अति महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं ।
आज संसार मे माता-पिता के प्रति श्रद्धा, सम्मान, कृतज्ञता तथा सेवा-भाव संतान में प्रायः नाममात्र ही रह गया है । अधिकतर माता-पिता संतान के कृतघ्नता तथा दुर-व्यवहार के शिकार हैं । फिर भी, जहां कहीं भी संतान के हृदयों में उच्च-भाव वर्तमान हैं, वहां उन उच्च भावों की महक ही अलग है, व्यवहार अलग हैं, बोल भी अलग हैं तथा सेवा तथा सम्मान के दृश्य भी अलग हैं ।
भगवान देवात्मा के देवप्रभावों को लाभ करके एक एक जन के हृदय से कैसे सुंदर भाव प्रकट होते हैं, उनके कुछ दृष्टांत नीचे उद्धृत किये जा रहे हैं ।
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1. मैं प्रति दो फूल लेता हूँ । पहला फूल भगवान देवात्मा के श्रीचरणों में अर्पित करता हूँ, जिन्होंने मुझे मेरी माता का उपकारी रूप दिखा दिया। दूसरा फूल माता जी की छवि के सम्मुख अर्पित करके नत-मस्तक होता हूँ । (बलदेव सिंह)
2. मैं जब माता जी को अंगूर खिला रहा था, तो मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे उनका रस मेरे भीतर जा रहा है ।
( विजय सिंघल)
3. एक ईमानदार पटवारी तथा श्रद्धेय पिताजी का पुत्र होने का मुझे गर्व है । उनका नेक जीवन मेरे व्यवहार में सदा ईमानदारी हेतु प्रेरणादायक रहा है ।
(सुदेश गुप्ता)
4. यह गलत है कि पिता जी आजकल हमारे पास रह रहे हैं। परन्तु यह सत्य है कि हमारा सौभाग्य है, कि आजकल हम सब पिताजी के पास रह रहे हैं ।
(बृजेश गुप्ता)
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प्रिय मित्रो ! ऐसे सैंकड़ों उदाहरण हैं, जो देवात्मा के देव प्रभावों से उतपन्न हुए हैं । यह सब श्रद्धा एवं सम्मान की बोली है, जो सब मनुष्यों के हृदयों से निकलनी चाहये ।
सबके हित का मार्ग खुल प्रशस्त हो ।
(देवधर्मी)