(हमारे आध्यात्मिक माता-पिता)
——————————————————–
‘त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्चच सखा त्वमेव,
त्वमेव विद्या च द्रविणम त्वमेव,
त्वमेव सर्वम मम देव देव…..
हे परम पूजनीय, सत्य देव श्री देवगुरु भगवान ! एक मात्र आप ही मेरे सच्चे आध्यात्मिक माता एवं पिता हैं | मेरे श्रद्धेय माता-पिता ने इस स्थूल जगत में मुझे शारीरिक रूप में जन्म दिया, वर्षों मेरी रक्षा तथा पालना की, तथा अपने सामर्थ्य के अनुसार उत्तम से उत्तम शिक्षा दिलाई | मुझ तुच्छ पर उन्होंने अनगिनत उपकार किए | अच्छा स्वस्थ शरीर, दिल और दिमाग दिया | आत्मिक-पूंजी के रूप में कितने ही मानसिक, कलात्मक तथा सात्विक गुण प्रदान किए | अच्छा तथा संस्कार- संपन्न वातावरण दिया जिसमे पल बढ़कर मेरा बालपन बड़ा हुआ | वैज्ञानिक-दृष्टिकोण प्रदान किया | और सबसे बढ़कर सात्विक अर्थात धार्मिक भाव प्रदान तथा पल्लवित किए |
मेरे श्रद्धेय माता-पिता ने मुझ तुच्छ पर अनगिनत उपकार किये हैं | लेकिन हे सतगुरु ! ‘आध्यात्मिक-जगत’ में न तो उन का जन्म हुआ था, न वह मुझे इस ‘धर्म-जगत’ में जन्म दे सके | आप के बिना सारा मनुष्य-जगत आत्मिक-अन्धकार में बुरी तरह ग्रस्त है | आपके अद्वितीय धर्म-रूप में मेरे आत्मा की रोगों तथा विनाश से रक्षा, सत्य मोक्ष तथा विकास की पूर्ण सामग्री वर्त्तमान है |
हे सतगुरु ! आप मुझे सब प्रकार की नीच गतियों, नीच चिंताओं, नीच घृणाओं तथा नीच जीवन के महा विनाशकारी पथ से मोड़ कर कदम कदम पर मेरी रक्षा करते हैं | आप ही मेरे आत्मा में उच्च-भाव, उच्च-राग एवं उच्च-बोध उत्पन्न तथा विकसित करते हैं | आप मुझे उच्च-प्रेरणाओं से भर कर असीम उत्साह प्रदान करते हैं | हे दाता ! जैसे सांसारिक माता-पिता बच्चे को शारीरिक रूप से जन्म देते हैं, उसकी रक्षा तथा पालना करते हैं, तथा अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाते हैं – आप उन सांसारिक माता-पिता से लाखों गुणा बढ़कर धर्म-जगत में अधिकारी आत्माओं के जन्म देने वाले हैं, रक्षा तथा पालना करने वाले हैं | सत्य तथा विज्ञान-मूलक धर्म की अद्वितीय शिक्षा देने वाले हैं | इसलिए, हे भगवन ! एकमात्र आप ही मेरे मुख्य तथा सार सम्बन्धी एवं आध्यात्मिक माता-पिता हैं | आपके ऐसे अद्वितीय देव रूप को सन्मुख लाकर मैं अति तुच्छ आपके श्रीचरणों में कोटि कोटि प्रणाम करता हूँ |
हे भगवन ! विश्व में मेरे भाई, बन्धु तथा मित्र बहुत हैं, जो मुझे अपने एक वा दूसरे सुख में अपना सहायकारी पाकर मेरे प्रति बहुत सदभाव, प्रेम तथा सन्मान रखते हैं | मुझे एक वा दूसरे ढंग से हर तरह प्रसन्न रखने का प्रयास भी करते हैं | इस विश्व में मेरे ऐसे भाई, बन्धु तथा मित्र भी बहत हैं जो मुझे अपने एक वा दूसरे स्वार्थमूलक अभिष्ट में सहायकारी न पाकर अथवा विघ्नकारी पाकर मेरे प्रति इर्ष्या, द्वेष तथा घृणा अनुभव करते हैं, तथा मुझे हर तरह से हानि पहुंचाने की इच्छा रखते हैं | भगवन ! उनके प्रति कमोबेश मेरा व्यवहार भी ऐसा ही है | सच्चा बन्धु और मित्र तो वह होता है जो प्रति क्षण सब प्रकार से हमारी रक्षा, भला तथा विकास चाहता और करता हो | हे देव ! एकमात्र आप ही मेरे सच्चे बन्धु तथा मित्र है, क्योंकि मेरी रक्षा, विकास और हित की सच्ची चिन्ता केवल आपको ही रहती है – जबकि मुझे अपनी रक्षा, विकास और हित की लेश-मात्र भी चिन्ता नहीं होती |
हे देव ! इस विश्व में विद्याएँ अनेक प्रकार की हैं, जो कितने ही प्रकार से बहुत हितकर भी हैं | लेकिन ‘जीवन-विद्या’ अर्थात आत्मा तथा धर्म का नेचर तथा विज्ञान-सम्मत सत्य-ज्ञान तथा बोध सर्वश्रेष्ठ तथा परमावश्यक है | अत: हे नेचर के अद्वितीय आविर्भाव ! आप सर्वश्रेष्ठ तथा परम ज्ञान के मूर्त-रूप हैं | आपके ऐसे अद्वितीय देव रूप को सन्मुख लाकर मैं अति तुच्छ आपके श्री चरणों में बार बार प्रणाम करता हूँ |
हे ‘सच्चे-धार्मिक जनों’ के परम आदर्श ! विश्व में धन भी अनेक प्रकार के हैं | यथा; रुपया-पैसा, ज़मीन जायदाद, ऊंची पदवी, मान-सन्मान, सौन्दर्य तथा विभिन्न-कलाएं आदि | लेकिन इन सब ऐश्वर्यों में ‘धर्म-धन’ सर्वोच्च तथा सर्वश्रेष्ठ धन है | अर्थात ‘देव जीवन’ हि ‘देव-धन’ अर्थात सर्वश्रेष्ठ धन है | आप हि इस विद्या तथा धन के एक मात्र स्त्रोत हैं | भगवन आपके ऐसे देव रूप को सन्मुख लाकर मैं अति तुच्छ आपके श्री चरणों में बारम्बार प्रणाम करता हूँ और आपसे यही शुभ-आशीष मांगता हूँ कि हे भगवान, में आपका शुभ आशीर्वाद, आपकी देवज्योति एवं देवतेज, आपका देव अमृतं पाने का सदा गहरा आकांक्षी बना राह सकूं । आपके अद्वितीय मिशन तथा महान कार्य मे अपनी सारी योग्यताएं लगा कर सफल कर सकूँ ।
है भगवन ! तुम आशा और विश्वास हमारे ;
तुम धरती और आकाश हमारे …
भगवन आपका तथा आपके सभी संबंधियों का, आपके सेवकों का, चारों जगतों का सब प्रकार से शुभ हो । मेरा शुभ हो । सबका हर प्रकार से शुभ हो । जो अभागे शुभ पाने के अधिकारी नहीं हैं, वह अधिकारी बन सकें ।
देवधर्मी