जिस प्रकार एक बच्चा अन्धकार में बहुत असहज अनुभव करता है, ठीक उसी प्रकार, सबसे विकसित प्रजाति का सदस्य होने के कारण, ‘मनुष्य’ भी अज्ञान के अन्धकार में बहुत परेशानी महसूस करता है | ‘मनुष्य’ विश्व में केवल शारीरिक आवश्यकताओं को लेकर उत्पन्न नहीं हुआ, किन्तु शारीरिक-स्तर से आगे चलकर इसकी सांस्कृतिक-आवश्कताएं यथा सौन्दर्य, सामाजिक, राजनैतिक एवं अन्य क्षेत्रों में ज्ञान अर्जित करने की भी हैं | इसमें कोई संदेह नहीं कि ‘विज्ञान’ ने मनुष्य के सन्मुख ‘प्रकृति’ (Nature) के कितने ही अन्धकार से परिपूर्ण क्षेत्रों में सत्य की ज्योति फैलाकर अपने महत्त्व को मजबूती के साथ स्थापित किया है | जब महान वैज्ञानिक न्यूटन ने आकर्षण-शक्ति (Law of Gravitation) के नियम की खोज की, उस समय उसने प्रकृति के अटल नियमों के अनुसार आकाश में विचरण करते खगोलीय-पिण्डों तथा धरती एवं जल में घट रही घटनाओं के सम्बन्ध में सत्यों तथा तथ्यों को समझने में मानवता की बहुत बड़ी सहायता की | उस समय महान पोप (ईसाईयों के सबसे बड़े धर्म-गुरु) ने मानवता की भावनाओं को व्यक्त करते हुए सत्य ही कहा था:
“प्रकृति तथा उसके नियम अन्धकार में पूरी तरह छिपे हुए थे;
अत: ईश्वर ने कहा, न्यूटन को आने दो (अर्थात जन्म लेने दो);
चारों ओर ज्ञान की ज्योति फैली होगी | न्यूटन के विश्व-पटल पर
आने से विज्ञान की ज्योति चारों ओर फ़ैल गई |”
चारों ओर विज्ञान की ‘ज्योति’ फ़ैल गई, और यह ज्योति सत्य की महिमा के लिए इतनी ही तथ्य-पूर्ण है, जितना कि हमारे चक्षुओं के सन्मुख सूर्य तथा उसका प्रकाश ! महान न्यूटन को उस समय जो सम्मान दिया गया, वह इस आधार पर क्योंकि “उसने विचारों के महा-समुन्द्रों की निपट अकेले ही यात्रा की थी |” अर्थात उसे अकेले ही गहन अध्ययन करना पड़ा था |
सत्यदेव संवाद के प्रिय पाठको ! धर्म के क्षेत्र में ‘अर्नाल्ड’ ने अपनी महान कविता में महात्मा बुद्ध को ‘एशिया की ज्योति’ शीर्षक से सम्बोधित करके सम्मानित किया था | ‘अर्नाल्ड’ ने पुन: एक अन्य कविता में महात्मा ईसा को ‘विश्व की ज्योति’ शीर्षक के सम्बोधन के द्वारा सम्मानित किया | परन्तु विकास-प्रक्रिया तथा वैज्ञानिक-विधियों के प्रभावों के अधीन ज्ञान के विकास की प्रक्रिया कभी रुकती नहीं है |
धर्म-क्षेत्र में एक पूर्णत: नए एवं अद्वितीय अस्तित्व का अवतरित होना विश्व की सर्वश्रेष्ठ घटना है | इस विभूति का आध्यात्मिक नाम ‘देवात्मा’ है | देवात्मा जन्म के साथ ही अद्वितीय आध्यात्मिक-शक्तियां अर्थात ‘सत्य तथा शुभ के प्रति पूर्णांग प्रेम एवं असत्य तथा अशुभ के प्रति पूर्णांग घृणा’ लेकर विश्व में प्रकट हुए | आगे चलकर यह अद्वितीय शक्तियां पुष्ट तथा विकसित होती गईं; जिनकी आपसी प्रतिक्रया के फलस्वरूप देवात्मा में अद्वितीय देव-ज्योति एवं देव-तेज उत्पन्न तथा विकसित हुए, जिनके आधार पर उन्होंने ‘मनुष्य’ के स्वभाव तथा लक्ष्य को वैज्ञानिक आधार तथा विकास-क्रम की दृष्टि से अध्ययन किया तथा विश्व में पहली बार मानवता को विज्ञान-मूलक सत्य-धर्म का सर्वश्रेष्ठ उपहार प्रदान किया, जिसकी मानवता को सदियों से बहुत आवश्यकता महसूस की जा रही थी | इस प्रकार देवात्मा ने धर्म-क्षेत्र में फैले हुए सदियों के महा भयानक अन्धकार को सदा-सदा के लिए दूर कर दिया | देवात्मा ने भी न्यूटन की ही तरह परन्तु पूर्णत: एक नए क्षेत्र अर्थात धर्म-क्षेत्र के ऐसे मार्ग पर बिलकुल अकेले यात्रा की, जिस मार्ग पर आज तक कोई नहीं चला था तथा देवात्मा का पथ-प्रदर्शन करने के लिए पहले से किसी यात्री के पांवों के निशान उस मार्ग पर वर्तमान नहीं थे | अर्थात देवात्मा को विज्ञान-मूलक सत्य-धर्म का पथ-प्रदर्शन लाभ करने के लिए किसी मनुष्य का कोई संग्राम उस मार्ग पर किंचित भी दिखाई नहीं पड़ा | अत: देवात्मा ने अकेले ही अथाह संग्राम करके विज्ञान-मूलक धर्म की खोज की ताकि मानवता को यह उच्चतम उपहार दे सकें |
देवात्मा के अनन्य शिष्य श्रद्धेय श्री पी. वी. कनल, जिन्होंने उक्त शीर्षक अर्थात जन्मजात आध्यात्मिक-सूर्य के नाम से यह पुस्तक लिखी थी, का शीर्षक बदल कर एक नया शीर्षक समाज की ओर से दिया गया – विश्व की नव-ज्योति, अर्थात The New Light of the World. इस नए शीर्षक के माध्यम से महात्मा बुद्ध तथा महात्मा ईसा के धर्म-क्षेत्र में किये गए योगदान का भी यथोचित सम्मान किया गया है | सत्य-धर्म-आकांक्षी जनों को उक्त पुस्तक अर्थात The New Light of the World एक बार अवश्य पढ़नी चाहिए, ताकि वह देवात्मा के शैशवकाल से लेकर मृत्यु प्रयन्त तक किये गए प्रयासों को आसानी से समझ सकें |
From – The New Light of the World
“प्रकृति तथा उसके नियम अन्धकार में पूरी तरह छिपे हुए थे;
अत: ईश्वर ने कहा, न्यूटन को आने दो (अर्थात जन्म लेने दो);
चारों ओर ज्ञान की ज्योति फैली होगी | न्यूटन के विश्व-पटल पर
आने से विज्ञान की ज्योति चारों ओर फ़ैल गई |”
चारों ओर विज्ञान की ‘ज्योति’ फ़ैल गई, और यह ज्योति सत्य की महिमा के लिए इतनी ही तथ्य-पूर्ण है, जितना कि हमारे चक्षुओं के सन्मुख सूर्य तथा उसका प्रकाश ! महान न्यूटन को उस समय जो सम्मान दिया गया, वह इस आधार पर क्योंकि “उसने विचारों के महा-समुन्द्रों की निपट अकेले ही यात्रा की थी |” अर्थात उसे अकेले ही गहन अध्ययन करना पड़ा था |
सत्यदेव संवाद के प्रिय पाठको ! धर्म के क्षेत्र में ‘अर्नाल्ड’ ने अपनी महान कविता में महात्मा बुद्ध को ‘एशिया की ज्योति’ शीर्षक से सम्बोधित करके सम्मानित किया था | ‘अर्नाल्ड’ ने पुन: एक अन्य कविता में महात्मा ईसा को ‘विश्व की ज्योति’ शीर्षक के सम्बोधन के द्वारा सम्मानित किया | परन्तु विकास-प्रक्रिया तथा वैज्ञानिक-विधियों के प्रभावों के अधीन ज्ञान के विकास की प्रक्रिया कभी रुकती नहीं है |
धर्म-क्षेत्र में एक पूर्णत: नए एवं अद्वितीय अस्तित्व का अवतरित होना विश्व की सर्वश्रेष्ठ घटना है | इस विभूति का आध्यात्मिक नाम ‘देवात्मा’ है | देवात्मा जन्म के साथ ही अद्वितीय आध्यात्मिक-शक्तियां अर्थात ‘सत्य तथा शुभ के प्रति पूर्णांग प्रेम एवं असत्य तथा अशुभ के प्रति पूर्णांग घृणा’ लेकर विश्व में प्रकट हुए | आगे चलकर यह अद्वितीय शक्तियां पुष्ट तथा विकसित होती गईं; जिनकी आपसी प्रतिक्रया के फलस्वरूप देवात्मा में अद्वितीय देव-ज्योति एवं देव-तेज उत्पन्न तथा विकसित हुए, जिनके आधार पर उन्होंने ‘मनुष्य’ के स्वभाव तथा लक्ष्य को वैज्ञानिक आधार तथा विकास-क्रम की दृष्टि से अध्ययन किया तथा विश्व में पहली बार मानवता को विज्ञान-मूलक सत्य-धर्म का सर्वश्रेष्ठ उपहार प्रदान किया, जिसकी मानवता को सदियों से बहुत आवश्यकता महसूस की जा रही थी | इस प्रकार देवात्मा ने धर्म-क्षेत्र में फैले हुए सदियों के महा भयानक अन्धकार को सदा-सदा के लिए दूर कर दिया | देवात्मा ने भी न्यूटन की ही तरह परन्तु पूर्णत: एक नए क्षेत्र अर्थात धर्म-क्षेत्र के ऐसे मार्ग पर बिलकुल अकेले यात्रा की, जिस मार्ग पर आज तक कोई नहीं चला था तथा देवात्मा का पथ-प्रदर्शन करने के लिए पहले से किसी यात्री के पांवों के निशान उस मार्ग पर वर्तमान नहीं थे | अर्थात देवात्मा को विज्ञान-मूलक सत्य-धर्म का पथ-प्रदर्शन लाभ करने के लिए किसी मनुष्य का कोई संग्राम उस मार्ग पर किंचित भी दिखाई नहीं पड़ा | अत: देवात्मा ने अकेले ही अथाह संग्राम करके विज्ञान-मूलक धर्म की खोज की ताकि मानवता को यह उच्चतम उपहार दे सकें |
देवात्मा के अनन्य शिष्य श्रद्धेय श्री पी. वी. कनल, जिन्होंने उक्त शीर्षक अर्थात जन्मजात आध्यात्मिक-सूर्य के नाम से यह पुस्तक लिखी थी, का शीर्षक बदल कर एक नया शीर्षक समाज की ओर से दिया गया – विश्व की नव-ज्योति, अर्थात The New Light of the World. इस नए शीर्षक के माध्यम से महात्मा बुद्ध तथा महात्मा ईसा के धर्म-क्षेत्र में किये गए योगदान का भी यथोचित सम्मान किया गया है | सत्य-धर्म-आकांक्षी जनों को उक्त पुस्तक अर्थात The New Light of the World एक बार अवश्य पढ़नी चाहिए, ताकि वह देवात्मा के शैशवकाल से लेकर मृत्यु प्रयन्त तक किये गए प्रयासों को आसानी से समझ सकें |
From – The New Light of the World