विद्वान् जन कहते हैं कि हर ताज ( CROWN ) सर पर सजाने के लिए होता है, लेकिन हर सर इस योग्य नहीं होता कि उस पर ताज सजाया जा सके | कहने का अर्थ यह है कि “प्रकृति-माता” हर मनुष्य को इस उपहार से सुशोभित नहीं करती कि वह “आत्म-चिन्तन या आत्म-परीक्षण” कर सके तथा नीच-भावों और नीच-जीवन से निकलने के लिए बेचैन प्रयासरत हो सके और उच्च-जीवन की ओर क़दम बढ़ा सके | यदि प्रत्येक मनुष्य के लिए ऐसा संभव होता तो विश्व की जो चिंताजनक हालत आज है, ऐसी कदापि न होती | प्राय हर दिल में, हर घर में, हर गाँव और नगर में, हर समाज में, हर देश में हाँ पूरी दुनिया में संबंधों में नरक छाया हुआ है | टी..वी. पर आजकल अलग अलग विषयों पर वार्तालाप (Debates) बहुत दिखाए जाते हैं ताकि किसी बेहतर नतीजे पर पहुंचा जा सके | लेकिन ऐसे कार्यक्रमों को देखकर बहुत कोफ़त होती है क्योंकि प्रत्येक वार्ताकार अपने आपको सच्चा और ठीक और बाकी सब को पूर्णतया झूठा और गल्त सिद्ध करने पर तुला हुआ दिखाई देता है | कारण यह है कि ऐसा प्रत्येक व्यक्ति पूरी तरह आत्म-अन्धकार में ग्रस्त होता है, स्वार्थी होता है तथा उतना बुद्धिमान तथा बोधवान नहीं होता, जितना वह अपने आप को ऐसा समझने का भ्रम पाले रहता है | सुखों का बंधुवा होता है, आत्मिक-रोगों का खाया हुआ होता है, और दुनिया-परस्ती का दास या कीड़ा होता है | बच्चों जैसी सौम्यता और सरलता, यदि कभी उसमे थी, तो वह उसे पूरी तरह खो चुका होता है | ऐसा जन आत्मिक-मृत्यु पाने और इस विश्व से सदा सदा के लिए नष्ट हो जाने के लिए अभिशप्त होता है, क्योंकि “प्रकृति-माता” ने उसे “आत्म-चिन्तन” जैसे अनुपम उपहार से पूरी तरह वंचित रक्खा है |
आजकल मेडिकल-कैम्प लगाने का बहुत चलन है, जिसमे अलग अलग बिमारियों के डाक्टर स्वास्थ्य-परीक्षा करके मरीजों को स्वास्थ्य सम्बन्धी ज्ञान तथा अमूल्य परामर्श देते हैं | जो जन अपने आप को पूरी तरह स्वस्थ समझते हैं यदि वह कभी अपनी ऐसी चिकित्सा-परीक्षा करवाएं तो कई ऐसी बातें सामने आयेंगी जिनका उन्हें पहले से कुछ भी ज्ञान नहीं था, और वह बुरी तरह डर जायेंगे | लेकिन कितने लोग हैं जो सहज में ही इस परीक्षा के द्वारा अपनी जांच करवाने को तैयार होंगे | शायद बहुत कम |
“आत्म-चिन्तन या आत्म-परिक्षण” भी अपने आत्मा की एक जांच ही है जिसके बिना ‘मनुष्य-जीवन’ सदा ख़तरे में पड़ा रहता है | ( Life is a wonderful privilege, but for those who deserve for it ). मनुष्य-जीवन प्रकृति का एक अद्भुत, अमुल्य उपहार तथा अवसर है, लेकिन केवल उनके लिए जो वास्तव में इसके सच्चे हक़दार या सुपात्र हैं | इस विषय में एक बहुत ही शिक्षा-प्रद कहानी है :-
एक मनुष्य जीवन से बहुत दुखी था | उसे किसी बात में सुख और संतोष नहीं मिलता था | वह किसी बात पे हंस भी नहीं पाता था | अपनी परेशानी से तंग आकर उसने देवी-देवताओं को याद करना शुरू किया, उनके आगे गिड़गिड़ाकर प्रार्थनाएं करता कि कोई तो मेरी परेशानी को समझे | उसे दो-तीन वर्ष ऐसे ही प्रार्थनाएं करते निकल गए लेकिन कोई देवी या देवता उसके आगे प्रकट नहीं हुआ | एक दिन बहुत परेशानी में उसने यमराज (मृत्यु-देव) को याद किया और कहा कि यदि कोई और देवता प्रकट नहीं होता तो हे महाराज आप ही मेरे सामने प्रकट होने का कष्ट करें | कहते हैं कि उसकी प्रार्थना सुनकर यमराज उसके सामने अचानक प्रकट हो गए और कहने लगे कि वत्स ! मैं तुम्हारी सारी परेशानियों को दूर करने आया हूँ | इसलिए चलो मेरे साथ | यम-देवता को यूं अपने सामने यकायक प्रकट हुआ देखकर वह जन हैरान रह गया और कहने लगा कि भगवन ‘मैंने आप को इसलिए थोड़े ही याद किया था कि आप मेरे प्राण ही ले लें | तो फिर—यमराज पूछने लगे ? वह कहने लगा कि भगवन मैं ज़िन्दगी में बहुत तंग और परेशान हूँ, मुझे काफी सारा धन चाहिए | कृप्या मुझे धन दे कर कृतार्थ करें | यमदेव ने कुछ देर विचार किया और फिर हवा में हाथ लहराया तो उनके हाथ में एक अटैचीकेस प्रकट हुआ | उन्होंने उस जन से कहा कि लो वत्स इस में बहुत सारा धन है जो आयुभर तुम्हारे लिए काफी होगा | अब ये अटैचीकेस तुम्हारा है | वह जन बहुत अधीर तथा उतावला था, अत: ज्योंही शीघ्रता से उसने अटैचीकेस उठाने का प्रयास किया, यमदेव ने उसे तुरंत रोका और कहा कि वत्स ! पहले तुम्हें एक छोटा सा कार्य करना होगा, तब यह सारा धन तुम्हारा होगा | उस जन ने कहा, भगवन आज्ञा दें कि मुझे क्या करना है | यमदेव कहने लगे कि ये रिमोट-कंट्रोलर लो और इसमें से एक बटन दबा दो, फिर ये अटैचीकेस तुम्हारा हुआ | वह जन क्योंकि बहुत जल्दबाज़ था, इसलिए ज्योंही वह रिमोट-कंट्रोलर उठाने के लिए आगे बढ़ा, तो यमदेव कहने लगे, वत्स ! धैर्य रक्खो और पहले पूरी बात ध्यान से सुन लो, फिर बताया हुआ कार्य करना | वह जन झिझककर पीछे हट गया, तो यमदेव ने कहा कि जब तुम इस रिमोट-कंट्रोलर का एक बटन दबाओगे तो विश्व में कहीं न कहीं किसी एक व्यक्ति की मृत्यु हो जायेगी और फिर ये सारा धन तुम्हारा हो जाएगा | अब ये रिमोट-कंट्रोलर उठाओ और इसका एक बटन दबाकर इस धन को प्राप्त कर लो | यह सुनते ही वह जन एकदम सकते में आ गया और कहने लगा कि भगवन मझे सोचने के लिए 15 दिन का समय देने की कृपा करें | यमदेव तथास्तु कह कर अंतर्ध्यान हो गए |
‘प्रिय मित्रो ! उस जन में शायद अभी कोई अच्छा भाव शेष जीवित था इसलिए उसका आत्म-चिन्तन (आत्म-मंथन) शुरू हो गया | वह सोचने लगा कि रिमोट का बटन दबाने से एक जन ही तो मरेगा, कोई सारी दुनिया थोड़े ही मर जायेगी ? कोई जन जो अमरीका में, इंग्लैण्ड में, जापान में, अफ्रीका में या किसी और दूरदराज़ के देश में रहता हो, मेरे बटन दबाने से यदि वह मर भी जाता है तो किसी को पता थोड़े ही चलेगा कि यह जन मेरे द्वारा बटन दबाने से मरा है ? उसने आगे सोचना शुरू किया कि हो सकता है ऐसा कोई जन एशिया-द्वीप के किसी निकट के देश में मर जाए, तो मुझे क्या | सोचते सोचते उसकी विचारधारा आगे बढ़ने लगी और उसने सोचा, कि हो सकता है कि मरने वाला वह जन मेरे अपने देश भारत में ही हो | अब वह जन कुछ गंभीर होने लगा | उसकी कल्पना-शक्ति ने आगे की छलांग लगाई और उसे लगने लगा कि हो सकता है वह जन मेरे अपने प्रान्त में ही निवास करता हो | भाव ज़ोर मारते और उसका दिल चाहता कि वह शीघ्रता से रिमोट का बटन दबाकर सारा धन काबू में कर ले, अगर कोई मरता है तो मरे, उसे क्या ? लेकिन फिर कोमल भाव उसे यह सुझाव देते, कि नहीं ऐसा करना उचित नहीं | किसी के प्राणों की क़ीमत पर धन प्राप्त करना बहुत बड़ा पाप और अपराध है | अर्थात इतना सोचने पर भी उसे कुछ विशेष तसल्ली नहीं हुई, क्योंकि वह कोई ठीक निर्णय नहीं ले सका |
आत्म-चिन्तन या आत्म-मंथन शायद यही है जिसमे अपनी कमियों, अपने दोषों तथा अपने कर्तव्यों की ओर हमारा ध्यान जाना परम आवश्यक है | इसके विपरीत दूसरे जनों के गुणों, अधिकारों की ओर ध्यान लेजाने के साथ साथ उनकी यदि कोई हानि हमारे से हो गई है, तो उसकी क्षति-पूर्ती करना, क्षमा मांगना भी बहुत ज़रूरी है | उस जन ने अपने विचारों को और आगे बढाने का प्रयास किया और उसे लगने लगा कि हो सकता है कि मरने वाला वह जन उसके अपने नगर में ही रहता हो, अपने मोहल्ले में रहता हो | यह भी हो सकता है कि मरने वाला जन उसके अपने परिवार में ही रहता हो | अचानक उसके दिलो-दिमाग़ में एक बिजली सी कौंधी और उसे लगने लगा, कि हो सकता है वह मरने वाला जन वह स्वयं ही हो | ऐसा विचार आते ही वह भावों के आवेग से बुरी तरह कांपने लगा और ज़ोर ज़ोर से रोने लगा | उसके ऐसे रुदन को सुनकर यमदेवता अचानक फिर प्रकट हुए और पूछने लगे कि वत्स ! तुमने रिमोट का बटन दबाने के बारे में क्या विचार किया ? अब वह जन सारा माज़रा अच्छी तरह समझ चुका था, अब उसे बोध हो चुका था कि इस प्रकार धन प्राप्त करने की मेरी कामना पाप-मूलक तथा अपराधमूलक है और सर्वथा त्याज्य है | अब उसका हृदय बदल चुका था इसलिए उसने हाथ जोड़ कर तथा प्रणाम करके यमदेवता से क्षमा-प्रार्थना की और कहा कि हे भगवन मुझे धन नहीं चाहिए | मुझे क्षमा चाहिए |
प्रिय सज्जनो ! हम सब को हर समय आत्म-परिक्षण करने की अति-आवश्यकता है कि हम जानबूझ कर या अनजाने में कोई ऐसी चिंता या गति तो नहीं कर रहे जो हमारे लिए और दूसरों के लिए हानि और दुःख का कारण बनती हो | परम पूजनीय भगवान् देवात्मा से बढ़ कर हमारा और कोई सच्चा ‘जीवन-पथ-प्रदर्शक’ नहीं हो सकता जो हमें इस दलदल से निकाल सके | काश ! अधिकारी आत्मा पूजनीय भगवान् देवात्मा के सन्मुख हृदयगत भावों से सच्चा आत्म-समर्पण कर सकें, तभी उनका सच्चा भला हो सकता है और उनके हृदय की अवस्था ऐसी बनी रह सकती है कि वह जब चाहें “आत्म-परिक्षण” कर सकते हैं |
आजकल मेडिकल-कैम्प लगाने का बहुत चलन है, जिसमे अलग अलग बिमारियों के डाक्टर स्वास्थ्य-परीक्षा करके मरीजों को स्वास्थ्य सम्बन्धी ज्ञान तथा अमूल्य परामर्श देते हैं | जो जन अपने आप को पूरी तरह स्वस्थ समझते हैं यदि वह कभी अपनी ऐसी चिकित्सा-परीक्षा करवाएं तो कई ऐसी बातें सामने आयेंगी जिनका उन्हें पहले से कुछ भी ज्ञान नहीं था, और वह बुरी तरह डर जायेंगे | लेकिन कितने लोग हैं जो सहज में ही इस परीक्षा के द्वारा अपनी जांच करवाने को तैयार होंगे | शायद बहुत कम |
“आत्म-चिन्तन या आत्म-परिक्षण” भी अपने आत्मा की एक जांच ही है जिसके बिना ‘मनुष्य-जीवन’ सदा ख़तरे में पड़ा रहता है | ( Life is a wonderful privilege, but for those who deserve for it ). मनुष्य-जीवन प्रकृति का एक अद्भुत, अमुल्य उपहार तथा अवसर है, लेकिन केवल उनके लिए जो वास्तव में इसके सच्चे हक़दार या सुपात्र हैं | इस विषय में एक बहुत ही शिक्षा-प्रद कहानी है :-
एक मनुष्य जीवन से बहुत दुखी था | उसे किसी बात में सुख और संतोष नहीं मिलता था | वह किसी बात पे हंस भी नहीं पाता था | अपनी परेशानी से तंग आकर उसने देवी-देवताओं को याद करना शुरू किया, उनके आगे गिड़गिड़ाकर प्रार्थनाएं करता कि कोई तो मेरी परेशानी को समझे | उसे दो-तीन वर्ष ऐसे ही प्रार्थनाएं करते निकल गए लेकिन कोई देवी या देवता उसके आगे प्रकट नहीं हुआ | एक दिन बहुत परेशानी में उसने यमराज (मृत्यु-देव) को याद किया और कहा कि यदि कोई और देवता प्रकट नहीं होता तो हे महाराज आप ही मेरे सामने प्रकट होने का कष्ट करें | कहते हैं कि उसकी प्रार्थना सुनकर यमराज उसके सामने अचानक प्रकट हो गए और कहने लगे कि वत्स ! मैं तुम्हारी सारी परेशानियों को दूर करने आया हूँ | इसलिए चलो मेरे साथ | यम-देवता को यूं अपने सामने यकायक प्रकट हुआ देखकर वह जन हैरान रह गया और कहने लगा कि भगवन ‘मैंने आप को इसलिए थोड़े ही याद किया था कि आप मेरे प्राण ही ले लें | तो फिर—यमराज पूछने लगे ? वह कहने लगा कि भगवन मैं ज़िन्दगी में बहुत तंग और परेशान हूँ, मुझे काफी सारा धन चाहिए | कृप्या मुझे धन दे कर कृतार्थ करें | यमदेव ने कुछ देर विचार किया और फिर हवा में हाथ लहराया तो उनके हाथ में एक अटैचीकेस प्रकट हुआ | उन्होंने उस जन से कहा कि लो वत्स इस में बहुत सारा धन है जो आयुभर तुम्हारे लिए काफी होगा | अब ये अटैचीकेस तुम्हारा है | वह जन बहुत अधीर तथा उतावला था, अत: ज्योंही शीघ्रता से उसने अटैचीकेस उठाने का प्रयास किया, यमदेव ने उसे तुरंत रोका और कहा कि वत्स ! पहले तुम्हें एक छोटा सा कार्य करना होगा, तब यह सारा धन तुम्हारा होगा | उस जन ने कहा, भगवन आज्ञा दें कि मुझे क्या करना है | यमदेव कहने लगे कि ये रिमोट-कंट्रोलर लो और इसमें से एक बटन दबा दो, फिर ये अटैचीकेस तुम्हारा हुआ | वह जन क्योंकि बहुत जल्दबाज़ था, इसलिए ज्योंही वह रिमोट-कंट्रोलर उठाने के लिए आगे बढ़ा, तो यमदेव कहने लगे, वत्स ! धैर्य रक्खो और पहले पूरी बात ध्यान से सुन लो, फिर बताया हुआ कार्य करना | वह जन झिझककर पीछे हट गया, तो यमदेव ने कहा कि जब तुम इस रिमोट-कंट्रोलर का एक बटन दबाओगे तो विश्व में कहीं न कहीं किसी एक व्यक्ति की मृत्यु हो जायेगी और फिर ये सारा धन तुम्हारा हो जाएगा | अब ये रिमोट-कंट्रोलर उठाओ और इसका एक बटन दबाकर इस धन को प्राप्त कर लो | यह सुनते ही वह जन एकदम सकते में आ गया और कहने लगा कि भगवन मझे सोचने के लिए 15 दिन का समय देने की कृपा करें | यमदेव तथास्तु कह कर अंतर्ध्यान हो गए |
‘प्रिय मित्रो ! उस जन में शायद अभी कोई अच्छा भाव शेष जीवित था इसलिए उसका आत्म-चिन्तन (आत्म-मंथन) शुरू हो गया | वह सोचने लगा कि रिमोट का बटन दबाने से एक जन ही तो मरेगा, कोई सारी दुनिया थोड़े ही मर जायेगी ? कोई जन जो अमरीका में, इंग्लैण्ड में, जापान में, अफ्रीका में या किसी और दूरदराज़ के देश में रहता हो, मेरे बटन दबाने से यदि वह मर भी जाता है तो किसी को पता थोड़े ही चलेगा कि यह जन मेरे द्वारा बटन दबाने से मरा है ? उसने आगे सोचना शुरू किया कि हो सकता है ऐसा कोई जन एशिया-द्वीप के किसी निकट के देश में मर जाए, तो मुझे क्या | सोचते सोचते उसकी विचारधारा आगे बढ़ने लगी और उसने सोचा, कि हो सकता है कि मरने वाला वह जन मेरे अपने देश भारत में ही हो | अब वह जन कुछ गंभीर होने लगा | उसकी कल्पना-शक्ति ने आगे की छलांग लगाई और उसे लगने लगा कि हो सकता है वह जन मेरे अपने प्रान्त में ही निवास करता हो | भाव ज़ोर मारते और उसका दिल चाहता कि वह शीघ्रता से रिमोट का बटन दबाकर सारा धन काबू में कर ले, अगर कोई मरता है तो मरे, उसे क्या ? लेकिन फिर कोमल भाव उसे यह सुझाव देते, कि नहीं ऐसा करना उचित नहीं | किसी के प्राणों की क़ीमत पर धन प्राप्त करना बहुत बड़ा पाप और अपराध है | अर्थात इतना सोचने पर भी उसे कुछ विशेष तसल्ली नहीं हुई, क्योंकि वह कोई ठीक निर्णय नहीं ले सका |
आत्म-चिन्तन या आत्म-मंथन शायद यही है जिसमे अपनी कमियों, अपने दोषों तथा अपने कर्तव्यों की ओर हमारा ध्यान जाना परम आवश्यक है | इसके विपरीत दूसरे जनों के गुणों, अधिकारों की ओर ध्यान लेजाने के साथ साथ उनकी यदि कोई हानि हमारे से हो गई है, तो उसकी क्षति-पूर्ती करना, क्षमा मांगना भी बहुत ज़रूरी है | उस जन ने अपने विचारों को और आगे बढाने का प्रयास किया और उसे लगने लगा कि हो सकता है कि मरने वाला वह जन उसके अपने नगर में ही रहता हो, अपने मोहल्ले में रहता हो | यह भी हो सकता है कि मरने वाला जन उसके अपने परिवार में ही रहता हो | अचानक उसके दिलो-दिमाग़ में एक बिजली सी कौंधी और उसे लगने लगा, कि हो सकता है वह मरने वाला जन वह स्वयं ही हो | ऐसा विचार आते ही वह भावों के आवेग से बुरी तरह कांपने लगा और ज़ोर ज़ोर से रोने लगा | उसके ऐसे रुदन को सुनकर यमदेवता अचानक फिर प्रकट हुए और पूछने लगे कि वत्स ! तुमने रिमोट का बटन दबाने के बारे में क्या विचार किया ? अब वह जन सारा माज़रा अच्छी तरह समझ चुका था, अब उसे बोध हो चुका था कि इस प्रकार धन प्राप्त करने की मेरी कामना पाप-मूलक तथा अपराधमूलक है और सर्वथा त्याज्य है | अब उसका हृदय बदल चुका था इसलिए उसने हाथ जोड़ कर तथा प्रणाम करके यमदेवता से क्षमा-प्रार्थना की और कहा कि हे भगवन मुझे धन नहीं चाहिए | मुझे क्षमा चाहिए |
प्रिय सज्जनो ! हम सब को हर समय आत्म-परिक्षण करने की अति-आवश्यकता है कि हम जानबूझ कर या अनजाने में कोई ऐसी चिंता या गति तो नहीं कर रहे जो हमारे लिए और दूसरों के लिए हानि और दुःख का कारण बनती हो | परम पूजनीय भगवान् देवात्मा से बढ़ कर हमारा और कोई सच्चा ‘जीवन-पथ-प्रदर्शक’ नहीं हो सकता जो हमें इस दलदल से निकाल सके | काश ! अधिकारी आत्मा पूजनीय भगवान् देवात्मा के सन्मुख हृदयगत भावों से सच्चा आत्म-समर्पण कर सकें, तभी उनका सच्चा भला हो सकता है और उनके हृदय की अवस्था ऐसी बनी रह सकती है कि वह जब चाहें “आत्म-परिक्षण” कर सकते हैं |
(देवधर्मी)