प्रिय मित्रो ! आजकल बहुत सारे तथाकथित धार्मिक-बाबाओं के किस्से चारों तरफ फैले हुए हैं | यह सब क्या है ? धर्म के नाम पर इतना पाप, अनाचार, कदाचार, व्यभिचार और न जाने क्या-क्या क्यों फैला हुआ है ? क्या कभी विचार करने का आप कष्ट करते हैं, कि जिन बाबाओं पर लोग इतना विश्वास करते हैं, कि अपना सब कुछ उनके चरणों में अर्पण करने के लिए सहर्ष ←तैयार हो जाते हैं, उन्हें क्या हो जाता है ? करोड़ों नहीं अपितु अरबों-खरबों रुपयों की जायदाद एवं धन-सम्पदा क्यों इकट्ठी करते हैं, जबकि शमशान में लिखा होता है, कि कफ़न के जेब (Pocket) नहीं होती | लाखों नहीं अपितु करोड़ों लोगों के विश्वास के साथ इतना भयानक विश्वासघात क्यों करते हैं ? आओ हम सब मिलकर आज इसी विषय पर कुछ विचार करें, कि ऐसा क्यों होता है तथा इसका निदान क्या है ?
प्रिय मित्रो ! सबसे पहले हमें मनुष्य के मूल-स्वभाव को समझना पड़ेगा, कि सब मनुष्यों का वास्तविक-स्वभाव क्या है तथा हम सब मनुष्य असल में चाहते क्या हैं ? “विज्ञान-मूलक सत्य-धर्म के प्रवर्तक एवं संस्थापक परम पूजनीय भगवान् देवात्मा” अपने धर्म-विज्ञान में फरमाते हैं, कि संसार के सब मनुष्य सुख चाहते हैं, दुःख से बचना चाहते हैं तथा सदा जीवित रहना चाहते हैं | यह सब आकांक्षाएँ अपने आप में बुरी नहीं हैं, लेकिन इनकी पूर्ती के लिए हमें सदा सतर्क रहने, अपने-आपकी आत्म-परीक्षा करने तथा अपने चारों तरफ के वातावरण के प्रति सचेत रहने एवं सहज विश्वास से बचे रहने की बहुत आवश्यकता है | लेख बहुत बड़ा न हो जाए, इसलिए आपकी सेवा में आज मात्र कुछ प्रश्न उठाना चाहूंगा, प्रत्येक जन को जिनका उत्तर अपने भीतर खोजते रहने की नितात्न आवश्यकता है | यदि इन प्रश्नों का उत्तर मिल सके, तो हम तथाकथित धार्मिक-पाखंडियों के मकड़जाल में क़ैद होने तथा लुटने-पिटने से बचे रह सकते हैं, अपनी रक्षा तथा विकास लाभ कर सकते हैं, अन्यथा ऐसे दुष्कर्म संसार में सदा होते रहेंगे तथा भोले भाले धर्म-भीरु लोग इन तथाकथित धार्मिक-पाखंडियों के हाथों लुटते रहेंगे | अत: प्रत्येक मनुष्य को अपना आत्म-परिक्षण करते रहना चाहिए तथा अपने आप से पूछना चाहिए कि :–
1. मैं कौन हूँ, मैं क्या हूँ ?
2 मेरे भीतर कौनसी चीज़ वर्तमान है तथा वह मुझे कहाँ ले जा रही है तथा किस हालत में
पहुंचा रही है ?
3 मैं अपने जीवन के सारे कार्यों तथा प्रयासों से अब तक किस हालत में पहुंचा हूँ ?
4 मैं किसके निकट तथा किससे दूर हो गया हूँ ?
5 किसके लिए लाभदायक तथा किसके लिए हानिकारक प्रमाणित हुआ हूँ ?
6 जिन-जिन के साथ आज तक मेरा सम्बन्ध हुआ है व रहा है, उनमे से मुझे किस-किस ने
क्या कुछ दिया है तथा किस हालत में पहुंचाया है ?
7 किस-किस सम्बन्धी ने मेरे भीतर किस-किस नीच-राग तथा नीच-घृणा को बढ़ाया या
भड़काया है ?
8 किस-किस सम्बन्धी ने मेरे भीतर किस-किस उच्च व धर्म-भाव को उत्पन्न या विकसित
किया है ?
9 कौन मुझे जीवन की किस गति की ओर ले कर गया है तथा मुझे किस सांचे में ढालने
का कारण बना है ?
10 अब मैं जीवन में क्या चाहता हूँ तथा किस चीज़ के लिए संग्राम करता हूँ ?
11 इस समय मेरे जीवन का लक्ष्य क्या बन रहा है ?
12 वह लक्ष्य नीच है या उच्च है ? नीच या उच्च-लक्ष्य से क्या तात्पर्य है ?
13 नीच व उच्च-लक्ष्य के क्या-क्या फल पैदा होते या हो रहे हैं ?
14 वह कौन है, जो मुझे मेरे अपने जीवन के बारे में सत्य-ज्ञान दे सकता है ?
15 लगता है, कि मैं आत्म-अन्धकार में बुरी तरह ग्रस्त हूँ | यदि ऐसा है, तो ‘आत्म-अन्धकार’
का क्या अर्थ है तथा वह कौन है जो मेरे आत्मा के विविध पक्षों में भरे अन्धकार को
दूर कर सकता है ?
16 कौन मेरा सच्चा रक्षक, सच्चा हितकारी तथा सच्चा विकासक है ?
17 क्या विश्व में वास्तव में कोई ऐसा सच्चा रक्षक, सच्चा हितकारी तथा सच्चा
विकासक है ? यदि हाँ, तो उसकी पहचान क्या है ? अर्थात सच्चे धर्म-गुरु के
क्या-क्या लक्ष्ण होते हैं ?
18 क्या ऐसा सच्चा रक्षक, सच्चा हितकारी तथा सच्चा विकासक आज तक किसी
जन को कभी मिला है ? यदि हाँ, तो उसके साथ सम्पर्क करने की विधि क्या हो
सकती है ?
प्रिय मित्रो ! हम सबको उपरोक्त तथा ऐसे कितने ही अन्य प्रश्नों के उत्तर जानने का भरसक प्रयत्न करना चाहिए | यदि किसी सौभाग्यवान जन को ऐसा सच्चा रक्षक, सच्चा हितकारी तथा सच्चा विकासक प्राप्त हो सके, तो उसकी सचमुच में बहुत रक्षा हो सकती है, सर्वोच्च हित हो सकता है तथा सर्व-श्रेष्ठ आत्म-विकास हो सकता है | इन सब प्रश्नों के उत्तर पाकर हम तथाकथित धार्मिक-पाखंडियों के मकड़जाल में क़ैद होने तथा विनष्ट होने से भी बच सकते हैं | एक और बात – वह यह, कि लोग इन पाखंडी बाबाओं के जाल में फंसकर बर्बाद न हों, उसके लिए अति आवश्यक है, कि सारी सरकारों एवं तथाकथित सारे धार्मिक और सामाजिक-संगठनों को चाहिए, कि वह सर्व-साधारण जनों में वैज्ञानिक-सोच (विशेषत: धर्म के सम्बन्ध में वैज्ञानिक-सोच) उत्पन तथा विकसित करें |
प्रिय मित्रो ! मुझे एक लेख “हमें चाहिए था गुरु ऐसा” लिखने का सौभाग्य मिला था, जिसमे मैंने ऐसे महा मानव के बारे संकेत मात्र दिया था, जिसे विज्ञान-मूलक सत्य-धर्म के सच्चे-गुरु होने का श्रेय “प्रकृति-माता” (Nature) ने स्वयं प्रदान किया है | तात्पर्य वास्तव में ऐसे महामानव “विज्ञान-मूलक सत्य-धर्म के प्रवर्तक एवं संस्थापक भगवान देवात्मा” ही वह एकमात्र सत्य-धर्म के अवतार हैं, जिनके धर्म-विज्ञान में इन सब प्रश्नों का प्रकृति-सम्मत एवं विज्ञान-सम्मत उत्तर उपलब्ध हो सकता है, और कहीं से नहीं हो सकता | इसलिए काश ! हम सब उनके धर्म-विज्ञान को बुद्धी से समझ सकें, हृदयगत उच्च-भावों से पसंद कर सकें तथा आत्मसात करके अपने मनुष्य-जीवन को उसके अनुसार जीने के योग्य बना सकें | सत्य-धर्म का एक बहुमूल्य सूत्र जो मुझे समझ आया है – वह यह है, कि जो व्यक्ति हर पल अपने कर्तव्यों तथा दूसरों के अधिकारों के प्रति सचेत रहता है, वही सही अर्थों में धर्मवान होने के मार्ग पर चल रहा है, बाकी सब तो रस्में पूरी कर रहे हैं, जिनसे कोई विशेष लाभ नहीं है |
प्रिय मित्रो ! सबसे पहले हमें मनुष्य के मूल-स्वभाव को समझना पड़ेगा, कि सब मनुष्यों का वास्तविक-स्वभाव क्या है तथा हम सब मनुष्य असल में चाहते क्या हैं ? “विज्ञान-मूलक सत्य-धर्म के प्रवर्तक एवं संस्थापक परम पूजनीय भगवान् देवात्मा” अपने धर्म-विज्ञान में फरमाते हैं, कि संसार के सब मनुष्य सुख चाहते हैं, दुःख से बचना चाहते हैं तथा सदा जीवित रहना चाहते हैं | यह सब आकांक्षाएँ अपने आप में बुरी नहीं हैं, लेकिन इनकी पूर्ती के लिए हमें सदा सतर्क रहने, अपने-आपकी आत्म-परीक्षा करने तथा अपने चारों तरफ के वातावरण के प्रति सचेत रहने एवं सहज विश्वास से बचे रहने की बहुत आवश्यकता है | लेख बहुत बड़ा न हो जाए, इसलिए आपकी सेवा में आज मात्र कुछ प्रश्न उठाना चाहूंगा, प्रत्येक जन को जिनका उत्तर अपने भीतर खोजते रहने की नितात्न आवश्यकता है | यदि इन प्रश्नों का उत्तर मिल सके, तो हम तथाकथित धार्मिक-पाखंडियों के मकड़जाल में क़ैद होने तथा लुटने-पिटने से बचे रह सकते हैं, अपनी रक्षा तथा विकास लाभ कर सकते हैं, अन्यथा ऐसे दुष्कर्म संसार में सदा होते रहेंगे तथा भोले भाले धर्म-भीरु लोग इन तथाकथित धार्मिक-पाखंडियों के हाथों लुटते रहेंगे | अत: प्रत्येक मनुष्य को अपना आत्म-परिक्षण करते रहना चाहिए तथा अपने आप से पूछना चाहिए कि :–
1. मैं कौन हूँ, मैं क्या हूँ ?
2 मेरे भीतर कौनसी चीज़ वर्तमान है तथा वह मुझे कहाँ ले जा रही है तथा किस हालत में
पहुंचा रही है ?
3 मैं अपने जीवन के सारे कार्यों तथा प्रयासों से अब तक किस हालत में पहुंचा हूँ ?
4 मैं किसके निकट तथा किससे दूर हो गया हूँ ?
5 किसके लिए लाभदायक तथा किसके लिए हानिकारक प्रमाणित हुआ हूँ ?
6 जिन-जिन के साथ आज तक मेरा सम्बन्ध हुआ है व रहा है, उनमे से मुझे किस-किस ने
क्या कुछ दिया है तथा किस हालत में पहुंचाया है ?
7 किस-किस सम्बन्धी ने मेरे भीतर किस-किस नीच-राग तथा नीच-घृणा को बढ़ाया या
भड़काया है ?
8 किस-किस सम्बन्धी ने मेरे भीतर किस-किस उच्च व धर्म-भाव को उत्पन्न या विकसित
किया है ?
9 कौन मुझे जीवन की किस गति की ओर ले कर गया है तथा मुझे किस सांचे में ढालने
का कारण बना है ?
10 अब मैं जीवन में क्या चाहता हूँ तथा किस चीज़ के लिए संग्राम करता हूँ ?
11 इस समय मेरे जीवन का लक्ष्य क्या बन रहा है ?
12 वह लक्ष्य नीच है या उच्च है ? नीच या उच्च-लक्ष्य से क्या तात्पर्य है ?
13 नीच व उच्च-लक्ष्य के क्या-क्या फल पैदा होते या हो रहे हैं ?
14 वह कौन है, जो मुझे मेरे अपने जीवन के बारे में सत्य-ज्ञान दे सकता है ?
15 लगता है, कि मैं आत्म-अन्धकार में बुरी तरह ग्रस्त हूँ | यदि ऐसा है, तो ‘आत्म-अन्धकार’
का क्या अर्थ है तथा वह कौन है जो मेरे आत्मा के विविध पक्षों में भरे अन्धकार को
दूर कर सकता है ?
16 कौन मेरा सच्चा रक्षक, सच्चा हितकारी तथा सच्चा विकासक है ?
17 क्या विश्व में वास्तव में कोई ऐसा सच्चा रक्षक, सच्चा हितकारी तथा सच्चा
विकासक है ? यदि हाँ, तो उसकी पहचान क्या है ? अर्थात सच्चे धर्म-गुरु के
क्या-क्या लक्ष्ण होते हैं ?
18 क्या ऐसा सच्चा रक्षक, सच्चा हितकारी तथा सच्चा विकासक आज तक किसी
जन को कभी मिला है ? यदि हाँ, तो उसके साथ सम्पर्क करने की विधि क्या हो
सकती है ?
प्रिय मित्रो ! हम सबको उपरोक्त तथा ऐसे कितने ही अन्य प्रश्नों के उत्तर जानने का भरसक प्रयत्न करना चाहिए | यदि किसी सौभाग्यवान जन को ऐसा सच्चा रक्षक, सच्चा हितकारी तथा सच्चा विकासक प्राप्त हो सके, तो उसकी सचमुच में बहुत रक्षा हो सकती है, सर्वोच्च हित हो सकता है तथा सर्व-श्रेष्ठ आत्म-विकास हो सकता है | इन सब प्रश्नों के उत्तर पाकर हम तथाकथित धार्मिक-पाखंडियों के मकड़जाल में क़ैद होने तथा विनष्ट होने से भी बच सकते हैं | एक और बात – वह यह, कि लोग इन पाखंडी बाबाओं के जाल में फंसकर बर्बाद न हों, उसके लिए अति आवश्यक है, कि सारी सरकारों एवं तथाकथित सारे धार्मिक और सामाजिक-संगठनों को चाहिए, कि वह सर्व-साधारण जनों में वैज्ञानिक-सोच (विशेषत: धर्म के सम्बन्ध में वैज्ञानिक-सोच) उत्पन तथा विकसित करें |
प्रिय मित्रो ! मुझे एक लेख “हमें चाहिए था गुरु ऐसा” लिखने का सौभाग्य मिला था, जिसमे मैंने ऐसे महा मानव के बारे संकेत मात्र दिया था, जिसे विज्ञान-मूलक सत्य-धर्म के सच्चे-गुरु होने का श्रेय “प्रकृति-माता” (Nature) ने स्वयं प्रदान किया है | तात्पर्य वास्तव में ऐसे महामानव “विज्ञान-मूलक सत्य-धर्म के प्रवर्तक एवं संस्थापक भगवान देवात्मा” ही वह एकमात्र सत्य-धर्म के अवतार हैं, जिनके धर्म-विज्ञान में इन सब प्रश्नों का प्रकृति-सम्मत एवं विज्ञान-सम्मत उत्तर उपलब्ध हो सकता है, और कहीं से नहीं हो सकता | इसलिए काश ! हम सब उनके धर्म-विज्ञान को बुद्धी से समझ सकें, हृदयगत उच्च-भावों से पसंद कर सकें तथा आत्मसात करके अपने मनुष्य-जीवन को उसके अनुसार जीने के योग्य बना सकें | सत्य-धर्म का एक बहुमूल्य सूत्र जो मुझे समझ आया है – वह यह है, कि जो व्यक्ति हर पल अपने कर्तव्यों तथा दूसरों के अधिकारों के प्रति सचेत रहता है, वही सही अर्थों में धर्मवान होने के मार्ग पर चल रहा है, बाकी सब तो रस्में पूरी कर रहे हैं, जिनसे कोई विशेष लाभ नहीं है |
हम सबके शुभ का मार्ग –प्रशस्त हो |
देवधर्मी
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