प्रिय मित्रो ! हम सब अच्छी तरह जानते हैं, कि जब किसी रोगी का ठीक इलाज होने लगता है, उसे ठीक दवा मिलने लगती, तो तुरंत रोग के ठीक होने के लक्ष्ण दिखाई देने लगते हैं | शरीर की तरह हमारा आत्मा भी अपनी एक अति जटिल गठन रखता है | यह रोग-ग्रस्त भी हो सकता है तथा हो जाता है | यदि इसका ठीक निदान होने लगे, तो तुरंत लक्ष्ण दिखाई देने लगते हैं | ‘धर्म’ वह वैज्ञानिक—पद्धति है, जो आत्मा का ठीक इलाज कर सकती है |
यहाँ कुछ घटनाएं मैं उन महा सौभाग्यवान जनों की देना चाहता हूँ, जिनको “विज्ञान-मूलक सत्य-धर्म के प्रवर्तक एवं संस्थापक भगवान् देवात्मा” के ‘अद्वितीय देव-प्रभाव’ (अर्थात आध्यात्मिक-औषधी) मिलते ही उनके आत्मिक-रोगों के ठीक होने के लक्ष्ण स्पष्ट होने लगे |
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यहाँ कुछ घटनाएं मैं उन महा सौभाग्यवान जनों की देना चाहता हूँ, जिनको “विज्ञान-मूलक सत्य-धर्म के प्रवर्तक एवं संस्थापक भगवान् देवात्मा” के ‘अद्वितीय देव-प्रभाव’ (अर्थात आध्यात्मिक-औषधी) मिलते ही उनके आत्मिक-रोगों के ठीक होने के लक्ष्ण स्पष्ट होने लगे |
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1. गुड़गांव जिला के एक माननीय सज्जन श्रीमान रामलाल जी, जो पटवारी तथा फिर कानूनगो के पद पर सेवारत रहे, जब उन्हें भगवान् देवात्मा के देव-प्रभाव (आध्यात्मिक-प्रभाव) मिलने लगे, तो तुरंत उनके आत्मा में उच्च-परिवर्तन आने के लक्ष्ण दिखाई देने लगे | उन्होंने अपने पहले के कितने ही पाप-कर्मों को बहुत घृणित रूप में न केवल देखा, अपितु उनकी मैल को धोकर अपने आत्मा को शुद्ध-पवित्र करने का महोच्च अधिकार भी लाभ किया |
वह लिखते हैं —
अपने पिता के साथ मेरा बहुत कड़वा सम्बन्ध था | मैं अपने पिता का एक ही पुत्र था | मैंने उनसे जीवन में बहुत सेवाएँ पाई हैं, परन्तु आयु के बढ़ने के साथ-साथ मैं इतना अन्धा हो गया, कि उनके उपकारी रूप को देखना तो एक तरफ रहा, उलटा मैं उनसे यह शिकायत करता रहा, कि आपने आजतक हमें रहने के लिए एक मकान तक बनाकर नहीं दिया |
जब इन्हें एक धर्म-समाज में जाने का अवसर मिला, तब से मैं अपने पिता का और भी अधिक अपमान करने लगा तथा उनसे बुरी तरह पेश आने लगा | मेरे पिता अपने विश्वास के अनुसार अपने ईष्ट की पूजा किया करते थे | मैं उनके सामने ही उनका मज़ाक अर्थात उपहास किया करता था | एक बार मेरे बुरे व्यवहार से तंग आकर मेरे पिता अपनी धोती और लोटा आदि लेकर घर से बाहर निकल गए थे | मै घमण्ड से अन्धा होकर उनको प्रणाम करने में भी अपना अपमान समझता था तथा कई बार कहा करता था, कि जब से आपके घर में मेरा जन्म हुआ है, तब से ही आपको अच्छे हालात प्राप्त हुए हैं | मेरी किस्मत से ही आप रोटी खाते हैं | मैंने अपने पिता को जितना दुःख दिया है तथा उनका जितना अपमान किया है, ऐसा अति घृणित व्यवहार बुहत कम संतान ने अपने माता-पिता के सम्बन्ध में किया होगा | अब मुझे उनके परलोक-गमन के पश्चात भी अपने इस अति घृणित व्यवहार से बहुत लज्जा, ग्लानी तथा दुःख बोध होता है |
वह लिखते हैं —
अपने पिता के साथ मेरा बहुत कड़वा सम्बन्ध था | मैं अपने पिता का एक ही पुत्र था | मैंने उनसे जीवन में बहुत सेवाएँ पाई हैं, परन्तु आयु के बढ़ने के साथ-साथ मैं इतना अन्धा हो गया, कि उनके उपकारी रूप को देखना तो एक तरफ रहा, उलटा मैं उनसे यह शिकायत करता रहा, कि आपने आजतक हमें रहने के लिए एक मकान तक बनाकर नहीं दिया |
जब इन्हें एक धर्म-समाज में जाने का अवसर मिला, तब से मैं अपने पिता का और भी अधिक अपमान करने लगा तथा उनसे बुरी तरह पेश आने लगा | मेरे पिता अपने विश्वास के अनुसार अपने ईष्ट की पूजा किया करते थे | मैं उनके सामने ही उनका मज़ाक अर्थात उपहास किया करता था | एक बार मेरे बुरे व्यवहार से तंग आकर मेरे पिता अपनी धोती और लोटा आदि लेकर घर से बाहर निकल गए थे | मै घमण्ड से अन्धा होकर उनको प्रणाम करने में भी अपना अपमान समझता था तथा कई बार कहा करता था, कि जब से आपके घर में मेरा जन्म हुआ है, तब से ही आपको अच्छे हालात प्राप्त हुए हैं | मेरी किस्मत से ही आप रोटी खाते हैं | मैंने अपने पिता को जितना दुःख दिया है तथा उनका जितना अपमान किया है, ऐसा अति घृणित व्यवहार बुहत कम संतान ने अपने माता-पिता के सम्बन्ध में किया होगा | अब मुझे उनके परलोक-गमन के पश्चात भी अपने इस अति घृणित व्यवहार से बहुत लज्जा, ग्लानी तथा दुःख बोध होता है |
काश ! हम सबके शुभ का मार्ग प्रशस्त हो !
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