The World of Feelings
The World of Feelings Q: What are those driving forces that make us move or act?Ans.:These are our feelings we are controlled by them. There is tremendous power in feelings. Our thoughts, speech, gesture, and attitude reflect our inner feelings. Instead, it is misnomer that we are driven by any external supernatural force. We all…
The Best Present
The Best Present A couple was going through financially tumultuous time and it was their 25th wedding anniversary. They lived in a small tenement and had barely enough money to consume two meals a day.Husband was not able to purchase any new clothes, jewelry or any other expensive gifts for his loving wife due to…
शक्ति का कार्य |
शक्ति का कार्य | शक्ति चाहे जीवित हो या अजीवित, बड़े अद्भुद कार्य करती है ! पुरानी बात है, बठिंडा (पंजाब) में एक डाक्टर साहब, जिनका नाम चन्दू लाल जी था, सरकारी अस्पताल में नियुक्त थे | बठिंडा नगर उस समय इतना विकसित नहीं हुआ था, तथा सरकारी मुलाज़िमों की दृष्टि में यदि किसी मुलाजिम…
14. विज्ञान-मूलक सत्य-धर्म के प्रवर्तक एवं संस्थापक भगवान देवात्मा के विषय मे समझने योग्य कुछ मूल बाते ।
14. देवात्मा अपनी देववाणी में फरमाते हैं, कि मैं इस धरती पर वह दीन व धर्म लाना चाहता हूँ, कि जो इसी दुनिया मे सब प्रकार के पापों तथा सब प्रकार की बुराइयों का नाश करता हो, तथा इसी धरती को सच्चा स्वर्ग बनाता हो ।प्रिय मित्रो ! देवात्मा की उपरोक्त देववाणी से स्पष्ट है,…
11. स्वदेश के सम्बन्ध में “विज्ञान मूलक सत्य धर्म प्रवर्तक भगवान देवात्मा” की धर्म-शिक्षा —
11. देवात्मा फरमाते हैं,कि प्रत्येक देश के प्रत्येक नागरिक के लिए यह अति आवश्यक है, कि वह अपने देश की प्रत्येक जाति तथा उसके प्रत्येक दल/वर्ग एवं सम्प्रदाय आदि के साथी मनुष्यों में, जहां तक संभव हो, परस्पर मेलजोल तथा सद्भाव की रक्षा एवं उन्नति में यथासाध्य सहायक बने ।प्रिय मित्रो ! आज हमारे देश…
13. विज्ञान-मूलक सत्य-धर्म के प्रवर्तक एवं संस्थापक भगवान देवात्मा के विषय मे समझने योग्य कुछ मूल बाते ।
13. देवात्मा फरमाते हैं, जब तक किसी व्यक्ति में मिथ्या तथा अशुभ के लिए कोई आकर्षण वर्तमान रहता है, तब तक उस जन में उस पक्ष में “सत्य एवं शुभ -स्वरूप भगवान देवात्मा” के प्रति कोई आकर्षण या अनुराग उतपन्न नहीं हो सकता । इस आकर्षण या अनुराग के न उतपन्न होने से हमें क्या…
10. स्वदेश के सम्बन्ध में “विज्ञान मूलक सत्य धर्म प्रवर्तक भगवान देवात्मा” की धर्म-शिक्षा —
10. देवात्मा फरमाते हैं, कि प्रत्येक नागरिक के लिए अति आवश्यक है, कि वह अपने देश की सुशासन-व्यवस्था के सुचारू रूप से कार्य निर्वहन के लिए कर आदि देने के द्वारा राजकोष की उचित रूप से सहायता करे । प्रिय मित्रो ! संसार मे हमें कुछ भी मुफ्त में नहीं मिलता तथा नहीं मिल सकता है…
12. विज्ञान-मूलक सत्य-धर्म के प्रवर्तक एवं संस्थापक भगवान देवात्मा के विषय मे समझने योग्य कुछ मूल बातें ।
12. देवात्मा फरमाते हैं, कि हम किसी भी मनुष्य या किसी अन्य अस्तित्व के साथ बँधे हुए नहीं हैं । अर्थात हम किसी आस्तित्व के अनुरागी या प्रेमक नहीं हैं । हम केवल सत्य एवं शुभ के अनुरागी हैं तथा इन अनुरागों को मुख्य रखकर ही प्रत्येक अस्तित्व के साथ सबंध रखते हैं । प्रिय मित्रो…
9. स्वदेश के सम्बन्ध में “विज्ञान मूलक सत्य धर्म प्रवर्तक भगवान देवात्मा” की धर्म-शिक्षा
9. देवात्मा फरमाते हैं, कि प्रत्येक नागरिक के लिए अति आवश्यक है, कि वह अपने देश के शासन तथा प्रबंध विषयक उचित नियमों के प्रति उचित रूप से सम्मान-भाव का बोध प्राप्त करे तथा उचित रूप से सम्मान प्रदर्शन करे । प्रिय मित्रो ! यह हमारा परम कर्तव्य है, कि हम अपने राष्ट्र – जिसमें हमारी…
11. विज्ञान-मूलक सत्य-धर्म के प्रवर्तक एवं संस्थापक भगवान देवात्मा के विषय मे समझने योग्य कुछ मूल बातें ।
11. भगवान देवात्मा का दावा (Claim) है, कि कोई मनुष्यात्मा ऐसा नहीं है, जो मेरे साथ कुछ भी जुड़ा हो (अर्थात जिसने मेरे देव-प्रभावों को कुछ भी पाया हो), वह अपनी पहली निकृष्ट आत्मिक-अवस्था की तुलना में पहले से अधिक बेहतर या श्रेष्ठ न बन गया हो ।प्रिय मित्रो ! यदि चिकित्सा-पद्धति ठीक चल रही…
8. स्वदेश के सम्बन्ध में “विज्ञान मूलक सत्य धर्म प्रवर्तक भगवान देवात्मा” की धर्म-शिक्षा —
8. स्वदेश की न्याय-प्रणाली के विषय मे देवात्मा फरमाते हैं, कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह अति आवश्यक है, कि वह यथा-सामर्थ्य अपने देश की शासन-प्रणाली के विषय मे अधिक से अधिक सत्य-ज्ञान लाभ करके देश के साथ अपने हार्दिक सम्बन्ध को उन्नत करे ।प्रिय मित्रो ! मैं केन्द्र सरकार के एक विभाग में सेवा-निवृत…
10. विज्ञान-मूलक सत्य-धर्म के प्रवर्तक एवं संस्थापक भगवान देवात्मा के विषय मे समझने योग्य कुछ मूल बातें ।
10. देवात्मा फरमाते हैं, कि देवत्व का जो ख़मीर मेरे अंदर है, वह पिशाचत्व को ग़ारत करता है , इसलिए वह पिशाचत्व के विष से प्रभावित आत्माओं के उद्धार एवं कल्याण का दैवीय-उपाय है ।साधारण शब्दों में — संसार के सभी मनुष्यात्मा आत्म अंधकार से बुरी तरह ग्रस्त हैं । तथा नीच सुखानुरागों एवं नीच…