Satya Dharam Bodh Mission

हमारी ज़िन्दगी का पॉयलट कौन है ?

हमारी ज़िन्दगी का पॉयलट कौन है ?

 प्रिय मित्रो ! हमारा ‘मनुष्य-जीवन’ एक वायुयान की न्याईं है, जिसको चलाने वाला पॉयलट अपनी क्षमता तथा योग्यता से चाहे तो सुरक्षित गंतव्य तक ले जाए, या अपनी न-समझी, अकर्मण्यता तथा अयोग्यता के वशीभूत अधर में ही नष्ट कर दे | अत: हमारे लिए अपने इस जीवन-रुपी वायुयान को समझना अति आवश्यक है तथा यह भी  जानना बहुत ज़रूरी है, कि हमने अपना यह यान चलाने के लिए किस पॉयलट के हाथों में सौंप रक्खा है ? 
 यह वायुयान और कुछ नहीं, हमारा “आध्यात्मिक-जीवन” (Religious Life) ही है, जो बहुत विकटताओं से भरा हुआ है | मनुष्य सुखों का अनुरागी है तथा दुःखों से घृणा करता है | दूसरे शब्दों में, मनुष्य ‘नीच सुख-अनुरागी’ है तथा ‘नीच घृणाकारी’ है; (नीच सुख-अनुराग तथा नीच-घृणायें उन आत्मिक-रोगों को कहते हैं, जिनके करने से हमारे अस्तित्व के मुख्य भाग अर्थात आत्मा की सबसे बढ़कर हानि होती है)| अर्थात प्रत्येक मनुष्य ने अपनी-अपनी आत्मिक-अवस्था या स्वभाव या परिस्थितियों के अनुसार अपना-अपना पॉयलट चुन रखा है | किसी जन के जीवन का पॉयलट बीड़ी या सिगरेट है, किसी जन के जीवन का पॉयलट शराब, मांस, जुआ या ऐसे ही कोई अन्य पतनकारी शौक हैं | किसी के जीवन का पॉयलट पति-पत्नी-बच्चे-पद-मान-प्रशंसा, ज़मीन-जायदाद, धन-सम्पत्ती या ऐसा ही कुछ और है | सुनने में यह बात शायद हास्यास्पद लगे, कि एक-एक छ: फुट का जवान दो इन्च की सिगरेट का ग़ुलाम है | ऐसे बंधुआ इंसानों का जो परिणाम होता है, वह शहद में पंख लिपटाए मक्खी से कोई बेहतर नहीं होता, जिसके बारे कहा गया है, कि 
“मक्खी बैठी शहद पे – लिए पंख लिपटाये; 
हाथ मले और सीर धुनें – लालच बुरी बलाय |”
विश्व की आज जो हालत है तथा चारों तरफ जो आपा-धापी तथा हौच-पौच का वातावरण बना हुआ है, उस सब का यही कारण है, कि न तो हमें अपने आध्यात्मिक-जीवन रुपी यान की होश है तथा न ही सही पॉयलट की पहचान | तभी तथाकथित पाखण्डी बलात हमारे जीवन-रुपी यान के पॉयलट बन बैठते हैं तथा बुरी तरह हमारा दोहन करते हैं तथा बुरी तरह ठग लेते हैं । इस तरह हमारे पास रोने-पीटने के अतिरिक्त और कुछ नहीं रहता |   

कहीं एक कथा पढ़ी थी, कि एक बार एक बच्चे को वायुयान का सफ़र करने का अवसर मिला | यान में प्रवेश करते ही उसे  काकपिट में बैठा पॉयलट दिखाई दिया | बच्चा पॉयलट से मिलकर यान सम्बन्धी अपनी जिज्ञासा शान्त करना चाहता था, लेकिन अधिकारीगण उसे काकपिट में जाने नहीं दे रहे थे | अंतत: पॉयलट के विशेष आग्रह पर बच्चे को पॉयलट से मिलने की अनुमति दे दी गई | बच्चा उससे बहुत सारी बातें जानकर कुछ ही क्षणों में संतुष्ट तथा प्रसन्नचित होकर अपनी सीट पर आ बैठा | सह-यात्रियों ने बच्चे के चेहरे को ध्यानपूर्वक पढ़ने का प्रयास किया तथा पाया कि बच्चा उत्साह तथा उमंग से परिपूर्ण है, क्योंकि उसे विमान के दुर्घटना-ग्रस्त होने की कोई आशंका नहीं है तथा उसका सारा भ्रम दूर हो चुका है एवं उसके चेहरे पर पॉयलट जैसी विजयी मुस्कान, आत्म-संतोष तथा आत्म-विश्वास छलक रहा है | इस दृश्य ने सारे सह-यात्रियों को भी एक असीम संतोष से भर दिया | 

प्रिय मित्रो ! इस बात से हम सहज ही अनुमान लगा सकते हैं, कि बच्चे को पॉयलट का चेहरा कैसा सौम्य तथा सहयोगपूर्ण लग रहा होगा ! यदि वह बच्चा काकपिट में किसी खूंखार आतंकी को देखता, जिसके चेहरे पर हिंसा, क्रोध, घृणा तथा द्वेष के भाव भयानक रूप से टपक रहे होते तथा वह दरिंदा उस नन्हे बच्चे को अपने खूनी पंज्जों में दबोच लेता, धमकाता तथा कहता, कि किसी को मत बताना, कि मैं यहाँ छुपा बैठा हूँ | बच्चे की कनपटी पर पिस्तौल रखकर अपनी बात आगे बढ़ाता, “अन्यथा मैं तुम्हें जान से मार दूंगा तथा जहाज़ को विस्फोट से उड़ा दूंगा” आदि | ऐसे में बच्चे की क्या अवस्था होती ? वह बदहवास बाहर को भागता, चिल्लाना चाहता, लेकिन अत्याधिक भय के कारण चिल्ला न पाता | लेकिन बच्चे के मासूम, उमंग तथा उत्साह से भरे चेहरे को देखकर अनुमान लगाया जा सकता है, कि बच्चा मानो पॉयलट से नहीं, अपितु अपने भगवान् से मिलकर आया है, तभी वह संतुष्ट तथा प्रसन्न-चित्त है | 

‘चार्ल्स बलोन्डीन’ जो एक विश्व प्रसिद्द नॅट था, उसने एक बार घोषणा की, कि वह ‘नयाग्रा-फाल’ जिसकी ऊंचाई 1100 फुट है, वहां पहाड़ी के एक छोर से दूसरे छोर तक रस्सी पर चलकर जाएगा | दोनों किनारों पर लोगों की बहुत भारी भीड़ यह तमाशा देखने के लिए एकत्र हो गई | ‘बलोन्डीन’ 32 फुट लम्बे तथा 40 पौण्ड भारी डण्डे को लेकर धीरे-धीरे एक-एक कदम चलता हुआ रस्सी के एक किनारे से दूसरे किनारे पर सुरक्षित पहुँच गया | यह सब तमाशा देखकर भीड़, जो अब तक ऐसे चुप थी, कि मानों उसे सांप सूंघ गया हो, प्रसन्नता से वाह-वाह कर उठी | 

‘बलोन्डीन’ ने उस विशाल ऊंचाई को एक बार पुन: अपनी पीठ पर एक व्यक्ति को उठाकर रस्सी पर चलकर पार करने का प्रस्ताव रक्खा | उसने लोगों से पूछा कि क्या उन्हें विश्वास है, कि वह ऐसा कर पायेगा | सबने चिल्ला-चिल्लाकर तथा उत्साह-पूर्वक उसकी बात में विश्वास व्यक्त किया, कि वह ‘बलोन्डीन’ है तथा वह कुछ भी कर सकता है | इस पर ‘बलोन्डीन’ ने आग्रह किया, कि कोई जन स्वेच्छा से उसकी पीठ पर सवार हो जाए, ताकि वह अपने इस अभियान का सफलता-पूर्वक प्रदर्शन कर सके | ऐसा सुनते ही उपस्थित जनों में मृत्यु जैसा सन्नाटा छा गया | कोई व्यक्ति उसके कन्धों पर सवार होकर रस्सी से इतना जोखिम भरा मार्ग पार करने की हिम्मत न कर सका | 

अंतत: ‘बलोन्डीन’ ने अपने मैनेजर ‘हैनरी कोल फोर्ड’ की ओर देखा तथा पूछा, कि क्या उसे विश्वास है कि वह (अर्थात बलोन्डीन) उसे पीठ पर उठाकर रस्सी के दूसरे छोर पर सुरक्षित ले जा सकेगा ? हैनरी बोला, कि हाँ, उसे पूरा विश्वास है, कि वह ऐसा कर सकेगा | इस तरह ‘बलोन्डीन’ ने हैनरी को अपनी पीठ पर सवार किया तथा एक बार फिर रस्सी पर चलने लगा | धीरे-धीरे चलते-चलते ‘बलोन्डीन’ एक छोर से दूसरे छोर के निकट पहुँच गया । लेकिन अचानक रस्सी ज़ोर-ज़ोर से झूलने लगी, शायद उसमे कुछ ख़राबी आ गई थी | ‘बलोन्डीन’ ने हैनरी को सावधान किया, कि वह सब कुछ उस पर छोड़ दे तथा अपनी ओर से बचने का कोई प्रयास न करे | हैनरी ने अपने स्वामी की आज्ञा का शत-प्रति-शत सही विधि से पालन किया तथा ‘बलोन्डीन’ बड़ी ही सावधानी से रस्सी पर हैनरी को एक छोटे बच्चे की तरह संभालता हुआ चलता रहा तथा सुरक्षित दूसरे छोर पर पहुँच गया | 

प्रिय मित्रो ! हमें भी अपने “आध्यात्मिक जीवन-रुपी यान” के सही पॉयलट की नितान्त आवश्यकता है, ताकि हम अपने आपको सम्पूर्ण रूप से उसके हाथों में सौंपकर सुरक्षित हो सकें | इस विषय में “विज्ञान-मूलक सत्य-धर्म के प्रवर्तक एवं संस्थापक परम पूजनीय भगवान् देवात्मा” हमारे “आध्यात्मिक जीवन-रुपी यान” के शत-प्रति-शत विश्वसनीय पॉयलट हैं, जिनके हाथों में अपना जीवन सौंपकर हम पूरी तरह निडर, सुरक्षित, प्रफुल्लित तथा सौभाग्यशाली हो सकते हैं | 

तात्पर्य यह है कि वह जन बहुत सौभाग्यशाली है, जिसने भगवान् देवात्मा को अपने हृदय पर सम्पूर्ण अधिकार दिया है | काश ! हम सब भी ऐसा सौभाग्य प्राप्त कर सकें |

“देवधर्मी”
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