Satya Dharam Bodh Mission

शक्ति का कार्य |

शक्ति का कार्य | शक्ति चाहे जीवित हो या अजीवित, बड़े अद्भुद कार्य करती है ! पुरानी बात है, बठिंडा (पंजाब) में एक डाक्टर साहब, जिनका नाम चन्दू लाल जी था, सरकारी अस्पताल में नियुक्त थे | बठिंडा नगर उस समय इतना विकसित नहीं हुआ था, तथा सरकारी मुलाज़िमों की दृष्टि में यदि किसी मुलाजिम की बदली वहां पर हो जाती थी, तो उसे ऐसा लगता था कि मुझे सज़ा दी गई है | उस समय वह क्षेत्र डाकुओं के नाम से काफी बदनाम था | उस नगर के एक मोहल्ले में डाक्टर साहब ने एक चौबारा निवास के लिए किराये पर ले रक्खा था | उनसे कुछ दूरी पर किसी ऐसे निवास-स्थान पर “विज्ञान-मूलक सत्य धर्म के प्रवर्तक भग़वान देवात्मा” अपने कुछ शिष्यों के पास उनको दर्शन तथा उपदेश देने के लिए पधारा करते थे | भगवान् देवात्मा का तेजमय व्यतित्व कुछ ऐसा था, जिसका अवलोकन करके कुछ लोग तथा डाक्टर साहब इस मिथ्या-धारणा से ग्रसित हो गए थे, कि देवात्मा के ये जो मोटे-तगड़े शिष्य हैं, ये सब डाकू हैं, तथा जिनके आगे यह अपना सर झुका कर उन्हें सम्मान देते हैं, वह इन डाकुओं के सरदार हैं | ये सब समय-समय पर यहां रात को इक्कट्ठे होकर लूट का सामान बाँटते हैं | शायद देवात्मा के उन शिष्यों में उनके बड़ा अच्छा स्वास्थ रखने वाले कुछ कृषक शिष्य भी होते थे, शायद इसीलिए यह धारणा बनी कि ये सब डाकू हैं, और अपने सरदार (अर्थात देवात्मा) के सन्मुख इसीलिए झुक-झुककर सम्मान करते हैं | और इसलिए कई जनों की तरह डा. चन्दू लाल जी भी देवात्मा से कटकर दूर-दूर रहते थे | देवात्मा अपने शिष्यों को सत्य-धर्म की शिक्षा साधारण से साधारण शब्दों तथा उदाहरणों से समझाया करते थे | एक बार देवात्मा अपने इन्हीं कुछ शिष्यों के साथ रेलवे-स्टेशन बठिंडा के रेल-इन्जिन-शेड के पास विराजमान थे, तथा वह उन्हें रेलवे-इन्जिन की ओर संकेत करके कुछ समझा रहे थे | अकस्मात डा. चंदुलाल जी उनके पास से गुज़रे, कि उनके कानों में देवात्मा के द्वारा बोले गए कुछ शब्द सुनाई दिए | वह यह शब्द सुनकर वहीँ रुक गए | बोले-बोलते देवात्मा का ध्यान डा. साहब की ओर गया, तो उन्होंने फ़रमाय कि आप दूर क्यों खड़े हैं, निकट आ जायें | डा. साहब झिझकते-झिझकते पास आकर देवात्मा की विलक्ष्ण देववाणी सुनने लगे | देवात्मा अपने शिष्यों को रेलवे-इन्जिन का उदाहरण देकर समझा रहे थे कि देखो इस इन्जिन के पीछे की ओर काफी मात्रा में कोयला रक्खा हुआ है, सामने एक स्थान पर काफी मात्रा में पानी है | कोयले को जलाकर पानी को ख़ूब गर्म किया जाता है, तथा उससे बनने वाली भाप, जो बहुत शक्तिशाली होती है, को एक विशेष विधि से तय्यार की हुई मशीन के माध्यम से इन्जिन में ऐसे स्थान पर डाला जाता है- जिसके धक्के से इन्जिन की भीतर की मशीनरी विशेष दिशा की ओर घूमने लगती है | उसकी इस गति से इन्जिन में नीचे जुड़े हुए पहिये भी घूमने लगते हैं, तथा भाप के बल के कारण इन्जिन आगे या पीछे, जिस ओर लेजाना चाहें, उस दिशा की ओर बड़े वेग से दौड़ने लगता है | इस इन्जिन के पीछे जो डिब्बे अपनी-अपनी सांकल के द्वारा जुड़े होते हैं, वह भी उसी तरफ हज़ारों मील दूर तक दौड़े चले जाते हैं, जिस तरफ इन्जिन दौड़ता जाता हैं | इस दृष्टांत के द्वारा देवात्मा अपने शिष्यों को यह समझा रहे थे, कि जिस प्रकार भाप की शक्ति के बल से इन्जिन के पीछे जुड़े हुए डिब्बे, जिनका भार सैंकड़ों नहीं बल्कि हज़ारों टन होता है, हज़ारों मील दूर तक दौड़े चले जाते हैं | ठीक इसी प्रकार प्रत्येक मनुष्य की आत्मा में भी ऐसी-ऐसी शक्तियां (अर्थात भाव-शक्तियां) वर्तमान होती हैं, कि जिनकी प्रबल प्रेरणा के वशीभूत होकर वह भी अपने जीवन में रेल के डिब्बों की न्याईं दूर-दूर तक दौड़े चले जाते हैं | अर्थात विश्व के सब मनुष्य अपनी-अपनी भाव-शक्तियों के दास है तथा उनकी प्रबल प्रेरणा के वेग में बहकर वही काम करने के लिए विवश होते हैं, जिन कामों के करने से उनके भाव संतुष्ट हो सकें तथा उन्हें सुख प्राप्त हो सके | हम सब मनुष्य पशुओं की एक विशेष प्रजाति से विकसित हुए हैं, तथा जन्मजात हम सब में पशु-वृतियों की भरमार है | पशु-वृतियां वह स्वभाव होता है, जिनके कारण कोई जीव अपने लिए केवल सुख चाहता है, तथा उस सुख के लिए कुछ भी अच्छा या बुरा अर्थात साम-दाम-दण्ड-भेद किसी भी निति क अपनाने से परहेज नहीं करता | अपने निकट से निकट के सम्बन्ध में भी बड़े से बड़े पाप-क्रम भी करने से झिझकता नहीं है | आज विश्व में चारों ओर पाप-कर्मों तथा अराजकता का जो महा भयानक वातावरण ठाठें मार रहा है, उन सब का यही सबसे बड़ा कारण है | तीसरे विश्व-युद्ध के बादल चारों ओर मंडरा रहे हैं | सब देश अणुबम, परमाणुबम, हाइड्रोजन बम तथा भयानक से भयानक हथियार बनाने की होड़ में लगे हुए हैं, उस सब के पीछे भी यही सबसे बड़ा मुख्य कारण है | आज मनुष्य को जंगली जानवरों से नहीं बल्कि साथी मनुष्यों से अधिक डर लगता है | तात्पर्य यह कि प्रत्येक मनुष्य सुख का पूर्ण तौर पर आशिक है तथा दुखों से घृणा करता है, अत: अपने निज के सुख के लिए वह हर समय कुछ भी करने के लिए तत्पर रहता है | इसीलिए विश्व में चारों ओर पाप-कर्मों, अपराधों, बलात्कारों, कत्लो-ग़ारत तथा अन्य भयानक अत्याचार हो रहे हैं | देवात्मा ने रेल-इन्जिन की भाप की शक्ति का उदाहरण देकर मनुष्य-मात्र को यही समझाना चाहा है कि मनुष्य के सुख-मूलक भाव ‘नीच-भाव’ हैं, जो इसे भाप की शक्ति की तरह पाप के सागर में कहीं का कहीं लेजाते हैं | मनुष्य पढ़ा-लिखा होकर, समझदार होकर, तजरुबेकार होकर, हाँ कितनी ही सहुलतों (Facilities) का स्वामी होकर भी अपने इस अभिशप्त-जीवन की क़ैद से बाहर नहीं निकल सकता | अभी कुछ दिनों पहले पर्यावरण तथा धरती की रक्षा के लिए विचार करने हेतु विश्व-सम्मलेन हुआ था | ऐसे सम्मलेन पिछले कई वर्षों से हर वर्ष होते रहे हैं | परिणाम …………… | स्पष्ट है, कोई मनुष्य/देशा अपने व्यवहार को देखने तथा उसमे सुधार लाने के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं है | मनुष्य द्वारा निर्मित विश्व की कुल समस्याएं मनुष्य की इसी भयानक प्रवृति (अर्थात सुख-अनुराग) की ओर इशारा कराती हैं |
भगवान् देवात्मा ने फरमाया है कि :- मनुष्य द्वारा निर्मित इसकी कुल समस्याओं का इलाज इसकी आत्मा में छुपा हुआ है | अर्थात यदि मनुष्य की आत्मिक-शक्तियों का ठीक ढंग से सुधार किया जा सके, तो मनुष्य के द्वारा उत्पन्न की गई कुल समस्याओं का समाधान बड़ी आसानी से हो सकता है | इसकी आत्मा की रक्षा तथा विकास किया जा सकता है | काश ! हम देवात्मा की शरण में आ सकें तथा उनकी विज्ञान-मूलक सत्य धर्म की शिक्षा को हृदयगत भावों से समझकर अपने जीवन में उतार सकें । (देवधर्मी)
Exit mobile version