Satya Dharam Bodh Mission

7. विज्ञान-मूलक सत्य-धर्म के प्रवर्तक एवं संस्थापक भगवान देवात्मा के विषय मे समझने योग्य कुछ मूल बातें ।

7.  देवात्मा फरमाते हैं, कि जहाँ तक भी कोई मनुष्यात्मा मेरे देव-प्रभावों को ग्रहण करता है, वहां तक उस जन की अपनी योग्यता केअनुसार उसके भीतर एक या दूसरी ऐसी बुराई या किसी ऐसे पाप के लिए घृणा प्रस्फुटित होजाना आवश्यम्भावी बात है, कि जिसे मैं घृणा करता हूँ ।

सरल शब्दों में — हम जिस जन को बहुत चाहते हैं तथा प्रेम करते हैं, वह जिस बुरी बात या पाप को घृणा करता है, हमारे लिए भी यह ज़रूरी हो जाता है, कि अपने अनुराग-भाजन की प्रसन्नता तथा खुशी के लिए हमारे हृदय में भी उस उस बात के लिए स्वत् ही घृणा उतपन्न हो जाये । यदि ऐसा नहीं होता,तो स्पष्ट है, कि हम उस जन को प्रेम नहीं करते । हम बहुत बड़े भ्रम या धोखे में हैं ।

किसी मनुष्य का इससे बढ़कर और कोई सौभाग्य नहीं हो सकता, कि उसका अनुराग-भाजन देवात्मा सरीखा विश्व का सर्वश्रेठ व्यक्तित्व हो ।

काश ! हम भगवान देवात्मा के देव भावों को आत्मसात कर सकें तथा हमारे हित का मार्ग प्रशस्त हो !!

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